31 अगस्त 2010

रमजान महीना और आम मुसलमान

रमजान महीने के बारे में आम मुस्लमान के नज़र्यात. हर तबके के लोगों ने अपनी अपनी बात कही है. 

30 अगस्त 2010

शबे कद्र के आमाल की किताब

 माहे रमजान की किताब जिसमे दुआ , शबे कद्र के आमाल, ईद के आमाल, ईद की नमाज़, नमाज़े शब् इस किताब में हैं , किताब को डाउनलोड कर के उसका print निकाल लें.


28 अगस्त 2010

इमाम हसन (अ.स.) की विलादत के मौके पर एक और कसीदा

इमाम हसन (अ.स.) की विलादत के मौके पर एक और कसीदा जिसे मुफ्ती गंज, लखनऊ के मशहूर शाएर जनाब असद नकवी नसीराबादी ने Mumbai Shia News के ख़ास तौर पर रिकाड करवाया . आप भी उनके खुसूसी अंदाज़ से मेह्जूज़ हों .

26 अगस्त 2010

15 माहे रमजान, इमाम हसन (अ.स.) की विलादत का दिन

15 माहे रमजान, इमाम हसन (अ.स.) की विलादत का दिन है. आप लोगों कि खिदमत में My Karari की जानिब से मुबारकबाद.
इस मुबारक और ख़ुशी के मौके पर चार मिसरे पेश किये जा रहे हैं .

क्या देर से इफ्तार करना रोज़े को मकरूह कर देता है

17 अगस्त 2010

करारी के पास लहना गाँव में फसाद

पढ़िए दैनिक जागरण की रिपोर्ट :
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6651817_1.html
 http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6653034_1.html

रोज़ा खोलने के वक़्त में शिया और दूसरे फिरकों के दरमियान फर्क क्यूँ ?

माहे रमजान में शिया हजरात दूसरे फिरकों के मुकाबले रोज़ा देर से क्यूँ खोलते हैं? इस मसले को समझा रहे हैं मौलाना सय्यद हसनैन करार्वी.

11 अगस्त 2010

ज़मीर हैदर (शब्बू) का सायन अस्पताल में इन्तेकाल

ज़मीर हैदर, मरहूम रियाजुल हैदर के फरजंद जो शब्बू के नाम से पुकारे जाते थे और मुम्बरा में रहते थे कल उनका बॉम्बे के सायन अस्पताल में इन्तेकाल हो गया. तद्फीन आज शाम को मीरा रोड के कब्रस्तान में होना है.
सनीचर के दिन होटल में काम करते शब्बू पियाज़ कि बोरियां चढ़ा रहे थे कि एक बोरी उनके सर गिरी जिसकी वजह से उनके गर्दन की हड्डी टूट गई . तीन रोज़ ICU में रहने के बाद कल रात उनहूँ ने दम तोड़ दिया और अपनी माँ ,  बीवी और एक बेटी को रोता बिलाकता दूसरी और अबदी दुनिया को कूच कर गए. यह २८ साल का नौजवान बहुत खुश मिज़ाज था. अपनी बेवा माँ का बहुत ख़याल रखता था. चार महीना पहले ही बाप का साया सर से उठा था.
आप लोगों से आज शब् नमाज़े वहशत की दरख्वास्त है.

05 अगस्त 2010

जब इमाम आयेंगे

जब इमाम आयेंगे. सिब्ते जफ़र की मशहूर नज़्म जिसमे उन्हों ने हमारे ज़मीर को झिंझोड़ने की कोशिश की है और एक हद तक कामयाब हुए हैं. उसका असर होता है चाहे थोड़ी देर के लिए ही क्यूँ न हो. आप की खिदमत में पेश है.

04 अगस्त 2010

मंज़ूर तकवी उर्फ़ कज्जन का आज इन्तेकाल हो गया

मंज़ूर तकवी उर्फ़ कज्जन ने आज सुबह तकरीबन ५.३० बजे इस फानी दुनिया को खैरबाद कह दिया . आप की उम्र ८० से ज्यादा थी. मरहूम ने गुज़िश्ता साल हज का फ़रीज़ा भी अंजाम दिया था. कानपूर में एक हफ्ते से अस्पताल में दाखिल थे. फालिज का ज़बरदस्त झटका था. मरहूम कि तद्फीन आज करारी में होगी.
मरहूम ने एक अरसा बॉम्बे में गुज़ारा . बर्फ की कंपनी में मुलाजिम थे. बहुत मिलनसार थे. सामाजिक शख्सियत थे. बॉम्बे की मोगल मस्जिद में काफी मारूफ थे. हमारी Association of Imam Mahdi (a.s.) के मद्दाह थे. इमामे ज़माना (अ.स.) का ज़िक्र आते ही आँखें डबडबा जाती थीं. मरहूम कि औलाद में ६ बेटे और ५ बेटियां हैं. सब से बड़े फरजंद तनवीर और सब से छोटे मेह्रोज़ हैं.
मरहूम कि तद्फीन आज शाम ५ बजे अम्बाही बाग़ में होगी. नमाज़े मग्रेबैन में नमाज़े वहशत पढना न भूलें .

01 अगस्त 2010

सुरूद: या इमामे ज़माँ आप क्यूँ हैं निहां

यह तराना तकरीबन दस साल पहले बॉम्बे में १५ शाबान के जश्न में पढ़ा गया था . इस तराने को मरहूम अल्लामा जीशान हैदर जवादी ने लिखा था. इस को स्कूल के बच्चों ने बहुत ख़ूबसूरती से पढ़ा है.