24 मई 2011

विलादते जनाबे फातेमा ज़हरा मुबारक

तज़किरा  फ़ातेमा  ज़हरा  का  ज़रा  हो  जाए 
क्या  हकीकत  है  ज़माने  को  बयां  हो  जाए
उस  से  अल्लाहो -नबी  हो  नहीं  सकते  राज़ी
जिस  से  शेह्ज़ादिए-कौनेन  ख़फा  हो  जाए 

21 मई 2011

सय्यद सफी हैदर इन्तेकाल कर गए


आज शाम करेली, इलाहाबाद में सय्यद सफी हैदर रिज़वी ने इस दुनियाए फानी को खैरबाद कहा और अबदी दुनिया  को कूच किया. मरहूम 80 साल से ज्यादा जिए. आप का ताल्लुक करारी से मिला हुआ गाँव अग्योना था. मरहूम ने  शरीके हयात के साथ साथ दो लड़कियां और एक फरजंद को दाग़े मुफारेक़त दिया. अल्लाह उनके पस्मान्दगान को सब्र अता करे. 
सफी हैदर साहब ने बहुत ही सादा ज़िन्दगी गुज़ारी. एक मुद्दत से बीमार रहने के बाद आज दाइए अजल को लब्बैक कहा. इलाहबाद शहर के दर्याबाद के कब्रस्तान में कल इंशा अल्लाह सुबह नौ बजे तद्फीन होगी.
आप से एक सुरह फातेहा की दरख्वास्त है. 

19 मई 2011

हवाई जहाज़ का सस्ता किराया और मुश्किल सफ़र


ज़ियारत के लिए आमादा होने पर इस बात का ख़याल रहे की सफ़र की परेशानियां सामने आएंगी. लोग  लम्बी दूरी के सफ़र से  घबरा जाते हैं. 
बम्बई या देहली से शाम पहुंचना काफी थका देने वाला सफ़र होता है. अगर सउदी एरलाईन्स से टिकट है तो खाने पीने की परेशानी न होगी, लेकिन अगर सस्ती एरलाईन्स, अल अरेबिया से जाना है तो बहुत दिक्कत पेश आती है. क्यूंकि अल अरेबिया का  सस्ता टिकट होने की वजह से जहाज़ में नाश्ता और खाना नहीं दिया जाता. यहाँ तक की जहाज़ में पानी भी खरीद कर पीना पड़ता है. एक बोतल पानी 40 रूपए में. देह्शत्गर्दों के डर से मुसाफिर को जहाज़ में अपने साथ पानी ले जाने की भी इजाज़त नहीं है.
अगर हवाई जहाज़ किसी वजह से ताखीर से आए या जाए तो मुसाफिर को या तो भूका रहना पड़ेगा या फिर महंगा खाना पीना खरीदना पड़ेगा. यह दिक्क़तें न आएं अगर जहाज़ दिल्ली या बम्बई से सीधा शाम पहुंचे. लेकिन ऐसी कोई परवाज़ नहीं है. उम्मुल मसाएब, जनाबे जैनब (अ.स.) की ज़ियारत करने जा रहे हैं तो परेशानियों से घबराना कैसा?  

18 मई 2011

बम्बई से शाम के लिए रवानगी

होटल बिनाए कासिम में
 खलीज की सब से अच्छी हवाई सेवा सउदी एरलाइन्स की मानी जाती है. लेकिन शाम (सिरिया) जाने के लिए कोई सीधी परवाज़ नहीं है. बम्बई से रियाज़ और रियाज़ से दमिश्क जाना पड़ता है. रियाज़ में 4 घंटा हवाई अड्डे पर इंतज़ार कर के कुल नौ घंटे में आप बम्बई से दमिश्क पहुँच जायेंगे.
इत्तेफाक से सउदी अरब के मदीना और दीगर शहरों में रेतीले तूफ़ान की वजह से 15 अप्रैल को सुबह 7 बजे बम्बई हवाई अड्डे से उड़ने वाला जहाज़ 18 घंटे देर से उड़ा. रियाज़ हवाई अड्डे पर 10 घंटे कियाम करने के बाद हम लोग दमिश्क शाम 7 बजे पहुंचे और  सय्यदः  जैनब शहर के होटल "बिनाए कासिम" में रात 9 बजे सामान रखा. होटल जनाबे ज़ैनब के रौज़े के पिछवाड़े ही था. चूँकि रौज़ा रात 10 बजे बंद हो जाता है इस लिए हम लोग खा पीकर सो गए और जियारत दुसरे रोज़ पर टाल दी. इस ताखीर से हमारा एक दिन ज़ाए हुआ.

17 मई 2011

वतन वापसी

नजफ़ में रौज़ाए हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ.स.)
  शाम, ईराक और ईरान की ज़ियारात अपने इख्तिताम पर आई. 28 दिनों का यह टूर निहाएत ही कामयाब रहा. तीनो ममालिक में मौसम बहुत ही शानदार था. अप्रैल के दुसरे हफ्ते से मई के दुसरे हफ्ते में मौसम बहुत ही प्यारा रहता है, वरना मई के तीसरे हफ्ते से गर्मी शुरू हो जाती है. मौसम से परेशानी का एहसास खुसूसन ईराक में होता है. वहाँ बिजली हर दो घंटे के बाद चार घंटे गाएब रहती है, इस तरह 24 घंटों में सिर्फ 8  घंटा बिजली की सप्लाई रहती है. अक्सर होटल बिजली आने पर ही AC चलाते हैं, वरना जेनेरटर के ज़रिए सिर्फ पंखा चल सकता है. 
यह मसअला पूरे ईराक में है. हम लोगों ने जब सरज़मीने नजफ़ पर क़दम रखा तो मग़रिब की अज़ान होने वाली थी और उस वक़्त बिजली नहीं थी.  पूरा शहर जेनेरटर की आवाज़ से गूँज रहा था. चार बरसों में नजफ़ काफी तब्दील हो चुका था. सिकुरिटी बहुत सख्त थी. हालात को देखते हुए ज़रूरी भी था. शारे रसूल पर होटल शिक़ाकुल ईमान में तीन रोज़ कियाम करना था. यह होटल उसी सड़क पर वाके है जहां अयातुल्लाह सीस्तानी साहब का दफ्तर है. 
शाम से तकरीबन 30 घंटे के बस के सफ़र के बाद हिम्मत नहीं हुई की उसी शब् अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) के रौज़े पर हाजरी देते. रात के 11 बज रहे थे और रौज़ा 12 बजे बंद हो जाता है.