25 फ़रवरी 2012

मरहूम मुख़्तार की तद्फीन आज लहना में

लहना गाँव के सूबा मियां के फरजंद जो दिल्ली में Bombay Mercantile Bank में मुलाज़मत करते थे आज इलाहबाद में उनका इन्तेकाल हो गया. मरहूम का नाम मुख़्तार था और वोह एक मुद्दत से बीमार थे.
मरहूम की तद्फीन आज लहना में 4 बजे शाम को होगी. 
आप से नमाज़े वहशत पढने की गुज़ारिश है. 

24 फ़रवरी 2012

मरहूम सय्यद मंज़ूर हसन की 21 वीं बरसी

 गुज़िश्ता बुध, 29  रबीउल अव्वल को मरहूम सय्यद मंज़ूर हसन रिज़वी इब्ने सय्यद अख्तर हुसैन की 21  वीं बरसी थी. इसी मुनासेबत से मीरा रोड ग़रीब खाने पर फातेहा का इंतज़ाम था. 
कबाब, ज़र्दा, गोश्त, पुलाव, रोटी, फल वगैरा दस्तरख्वान पर चुना गया था. 
मरहुमीन का बड़ा एहसान होता है की वोह अपनी सालाना याद के साथ अच्छे अच्छे पकवान बनवाते हैं जिन् से हम अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ सैर होते हैं और उन गुज़श्तागान को सुरह फातेहा हदया करते हैं जिसकी वजह से उनके उखरवी दरजात में इजाफा होता है.
अल्लाह सुबहानाहू व ताआला हमारे नाना मरहूम के दरजात में बुलंदी अता करे, यकीनन वोह जवारे अहलेबैत (अ.स.) में होंगे क्यूंकि वो खुदा तर्स और इबादत गुज़ार मोहिब्बे आले रसूल (स.अ.) थे.
आप लोगों से भी गुज़ारिश है की मरहूम को सुरह फातेहा से याद करें. 
Pencil sketch of marhum Manzoor Hasan Rizvi

17 फ़रवरी 2012

मरहूमा ज़मीर फातेमा की बरसी की मजलिस

मरहूमा ज़मीर फातेमा बिन्ते हुसैन अब्बास की बरसी की मजलिस 19 फ़रवरी को मीरा रोड में होगी.
मरहूमा का इन्तेकाल गुज़िश्ता साल 21 रबीउल अव्वल (25 फ़रवरी) को करारी में हुवा था. मरहूमा के फरजंद जनाब सिब्ते साहब मीरा रोड में रहते हैं.
आप से एक सुरह फातेहा की दरखास्त है.  

06 फ़रवरी 2012

एक ज़माना ऐसा भी था!

जी हाँ. 
एक  ज़माना ऐसा भी था जब जनाब हसन मोहम्मद रिज़वी मशहूर ब हस्सू  करारी में "Paradise" होटल चलाया करते थे. होटल की ख़ास बात उसकी साफ़ सफाई, नफासत पसंदी, अच्छे मेयार का नाश्ता, आर्डर देने पर ताज़ा मिठाई, उठने बैठने की सहूलत और  हस्सू भाई की तरफ से मुफ्त बीडी. 
लेकिन एक चीज़ से जनाब को सख्त नफरत थी.....वोह था उधार.
उधार की वजह से उन्हें होटल बंद करके बॉम्बे हिजरत करनी पड़ी.

05 फ़रवरी 2012

करारी में मजलिस के दौरान जाकिर पर एतेराज़

करारी शिया जामा मस्जिद में मौलाना गरवी साहब मजलिस पढ़ते हुए.

करारी शिया जामा मस्जिद में उस वक़्त हंगामा हो गया जब मौलाना गरवी साहब (अहमदाबाद) ने अपनी मजलिस की शुरुआत करारी वालों पर अफ़सोस जताते हुए किया. और कहा की उनके लिए यह खबर गिरां गुजरी के करारी की इसी मस्जिद में ईदे ग़दीर की नमाज़ बा जमाअत हुई.
इस बात पर मजलिस में शरीक मोमिनीन ने ज़ेरे मिम्बर इस खबर की तरदीद की और कहा की मौलाना साहब पहले आप लोगों से तस्दीक कर लें उसके बाद इस तरह से मिम्बर से माईक पर इजहारे अफसोस करें.
मजलिस में बहेस छिड गई और मौलाना साहब ने अपने अलफ़ाज़ वापस लेते हुए मजलिस को आगे बढाया.
यह मजलिस मरहूम मोहम्मद रज़ा के ईसाले सवाब के लिए रखी गई थी और यह सालाना मजलिस 7 रबीउल अव्वल को नमाज़े मग्रबैन के बाद होती है.
ईदे ग़दीर में नमाज़े जमाअत की बहेस मजलिस के बाद भी जारी रही. मोमिनीन ने मौलाना गरवी साहब को समझाया के आइन्दा कोई इस तरह की गुफ्तगू सरे मिम्बर करने से पहले उसकी मुकम्मल तहकीक और तस्दीक कर लें वरना समाज में बिला वजह इख्तेलाफ पैदा होजाता है.
करारी में कोई ऐसा वाक़ेया पेश नहीं आया और न किसी ने ईदे ग़दीर की नमाज़ बा जमाअत  पढ़ी और न पढ़ाई.