30 जून 2012

मरहूम सय्यद मोहम्मद हामिद रिज़वी की मजलिसे तरहीम


मरहूम सय्यद मोहम्मद हामिद रिज़वी के इन्तेक़ाल के छे महीने मोकम्मल होने पर मजलिसे अजा का एहतिमाम किया गया है। 
इलाहाबाद के मोमिनीन से शिरकत की दरख्वास्त है।


तारीख :     1 July, इतवार , रात 8.30 बजे।
मक़ाम:      A-52, अब्बास हाउस, करेली, इलाहबाद.
ज़ाकिर :    मौलाना क़मर सुलतान साहब (Noida) 


आप से मरहूम के लिए सुरह फातेहा की गुज़ारिश है। 



29 जून 2012

कूंडा की याद


कूंडा खाए आज चौदा  दिन हो गए हैं लेकिन याद अब भी सता रही है. अब एक मौक़ा और है।
शबे बरात। लेकिन उस रात तो हलवा बनता है। चने का हलवा और रवा का, खीर तो साल में एक बार ही मज़ा देती है चाहे आप साल भर बनाते रहें। कूंडे की खीर का ज़ाइका ही कुछ और है। माहे रजब में ताकीबात और कूंडे वाह ... इबादत की लज्ज़त और खीर की लज्ज़त। 

25 जून 2012

माही दर आब (पानी में मच्छली)



सय्यद अली काज़ी तबातबाई (र.अ.) ने वसीय्यत में लिखा है की "मोमिन को मस्जिद में नमाज़ अदा करनी चाहिए, मिसाल देते हुए  फरमाते हैं, की  मोमिन की हैसियत मस्जिद में उसी तरह होना चाहिए जैसे मच्छली का पानी में रहना. "

आप फरमाते हैं की नमाज़ को बाज़ारी न बनाओ उसे अव्वले वक़्त अदा करो। अगर तुम ने नमाज़ की हिफाज़त की तो तमाम चीज़ें महफूज़ हो जाएँगी। नमाज़ के बाद तस्बीहे हज़रत ज़हरा (अ.स.) पढ़ना न भूलना क्यूंकि इस शुमार "ज़िक्रे कबीर " में होता है। उसके बाद आयतल कुर्सी को तर्क न करना। 

24 जून 2012

हैदर अब्बास साहब के मकान पर महफिले मकासिदा

मोमिनीन शाएर को गौर से सुनते हुए।
कल रात मीरा रोड में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की विलादत की मुनासिबत से हैदर अब्बास साहब ने अपने मकान पर महफिले मकासिदा का एहतिमाम किया  था. जिसमें  वाजिहुल हसनैन, हुज्जत, अशर, ज़व्वार, मौलाना शहीद साहब, ज़हीरुल हैदर, हसन इलाहाबादी और फहीम इलाहाबादी  ने अपना मंजूम नजराना पेश किया. मोमिनीन मेह्जूज़ हुए। ज़मज़म पुलाव का लुत्फ़ लिया और अपने घरों को रवाना हुए। 

अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी को बिखरने से बचाएं


 "ज़नो शौहर के हुकूक "

आज की इस मशीनी और दौड़ती भागती ज़िन्दगी में, शादी शुदा जिंदगियों में बहुत से मसाएल उभर कर सामने आ जाते हैं. घर के पुर सुकून माहोल को महेंगाई और आर्थिक परेशानी खराब कर देती  है  मियां बीवी के दरमियान मोहब्बत को कडवाहट में बदल देती हैं.
बीवी और शौहर की तालीमी न बराबरी भी टेंशन का बाईस होजाती है. किताब "ज़नो शौहर के हुकूक " मियां बीवी के पाक रिश्तो को बाक़ी रखने के लिए एक अच्छी गाइड है. इसे ज़रूर पढ़ें. उर्दू और अंग्रेजी ज़बानों में दस्तयाब है.
फ़ारसी ज़बान में मरहूम शैख़ मोहम्मद इस्माइल रजबी ने लिखी थी, जिसका तर्जुमा मरहूम सय्यद ग़ुलाम हसनैन करार्वी ने किया था और उर्दू से अंग्रेजी में सय्यद अतहर हुसैन ने किया है. अगर कोई साहब दीन की खिदमत के लिए इस्लाम में "जनों शौहर के हुकूक" को हिंदी में तर्जुमा करदे तो बहुत से रिश्ते टूटने से बच सकते हैं.
उर्दू और अंग्रेजी की किताब निशुल्क/मुफ्त हासिल करने के लिए आप मुंबई के इस फ़ोन नंबर पर अपना नाम और पता लिखवा दें ताकि यह किताब आपके घर तक पहुँच जाए.
Phone: 022-23463237

23 जून 2012

इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन



जौनपुर के इश्तेयाक हैदर जो मौलाना अली आबिद साहब के सब से बड़े दामाद हैं का कल इन्तेकाल हो गया. इस वक़्त जौनपुर में ही उनकी तद्फीन हो रही है.
आप लोगों से गुज़ारिश है की आज बाद मगरिब मरहूम के लिए नमाज़े वहशत पढ़ें.

22 जून 2012

राएगाँ जाती नहीं कोई दुआ शब्बीर की

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की विलादत के मौके पर ज़हीर इलाहाबादी (शैज़ी रिज़वी ) ने 
नजफे अशरफ, इराक से अपना कलाम www.MyKarari.com के लिए भेजा है. 
हम तहे दिल से उनका शुक्रिया अदा करते हैं. 
ज़हीर इलाहाबादी नजफे अशरफ में हौज़े इल्मिया में दीनी तालीम हासिल कर रहे हैं.

सोचता  हूँ   किस  तरह  होगी  सना  शब्बीर  की
मदहा  की  कुव्वत  अता  कर  दे  खुदा  शब्बीर  की
ज़िन्दगी  बे  मानिओ  मतलब  गुज़र  जाती  मेरी
शुक्रिया  तेरा  के   तू ने  दी  अजा  शब्बीर  की
मालिके  खुल्दे  बरीं   हो  जाता  है  लम्हों  में  वो
गर  किसी  बन्दे  पे  हो  जाए  अता  शब्बीर  की 
नोके  नेजा  पे  तिलावत  कर  रहे  हैं  शाहे  दीं
और  जियारत  कर  रहा  है  हल  अता  शब्बीर  की
मिस्ले  राहिब  बे  समर  उम्मीद  को  बख्शे  समर
राएगाँ   जाती  नहीं  कोई  दुआ  शब्बीर  की
क्या  कोई  बच  पाया  है  कहरे  खुदा  से  आज  तक
कहरे  खालिक  की  तरह  से  है  विगा  शब्बीर  की
जिस  घडी  तलवार  के  कब्जे  में  था  दस्ते  हुसैन
देखता  था  खालिके  अकबर  अदा  शब्बीर  की
अश्क  आखों  में  छलक  पड़ते  थे  पैग़म्बर  के  भी
आँख  में  आंसू   अगर  एक  आ  गया  शब्बीर  की .
नामए  आमाल  मेरा  देखने  से  पहले  तुम
जा  के  पूछो  तो जरा  मर्ज़ी  है  क्या  शब्बीर  की
पूछ   बैठा  ख्वाब  में  जिब्रील  से  मैं  क्या  करूं 
कह  उठे  लिख  दो  ज़हीर  अब  कुछ  सना  शब्बीर  की

05 जून 2012

13 रजब के मौके पर सादिक हसन रिज़वी का ताज़ा कसीदा My Karari के लिए


वेलादत  की  खबर  हैदर  की  पहुंची  दो  जहाँ  तक  है ,
गिरे  काबे  के  बुत  डर  कर  हदीसों  में  बयां  तक  है , 
है  काबा  मुन्तजिर  बिन्ते असद  के  पाक  कदमों  का , 
अली  के  वास्ते  जाये वेलादत  का  मकाँ  तक  है , 
बनेगा  फ़ातेमा  बिन्ते  असद  का  ज़चाखाना  यह , 
के  इस्तेकबाल   में  दीवारे काबा  शादमा  तक  है , 
अज़ल  का  नूर  दुनिया  में  हुआ  है  आज  जलवागर , 
सजी  बज्मे  वेलाये मुर्तजा  राहे जेना  तक  है , 
करेंगे  मीसमे  तम्मार  की  मानिंद  मिदहत  हम ,
अली  का  सच्चा  आशिक  दहर  में  पीरो जवाँ  तक  है ,
मुनाफ़िक़  जानवर  से  भी  गया  गुज़रा  न  हो  क्यों  कर , 
अकीदत  दहर  में  रखता  अली  से  बे-ज़ुबां  तक  है , 
बरहना  देख  कर  दुश्मन  की  जाँ  भी  बख्श  दी  हंसकर , 
अली  बुजदिल  अदू  के  इस  अमल  पर  मेहरबाँ  तक  है , 
अली  के  नाम  पर  सर  धुनते  हैं  अर्शी  फरिश्ते  तक , 
हुकूमत  Murtaza की  यह  ज़मीन  क्या  आसमाँ  तक  है ,
सुनाऊंगा   कसीदे  मर  के  मरकद  में  फरिश्तों  को , 
अली  की  मद हा     का  शैदा  गिरोहे -कुद्सियाँ  तक  है , 
अकीदे  की  न  पूछो  इन्तेहा  बीमार  सादिक  से , 
अली  के  नाम  से  उल्फत  तो  क़ल्बे नातवां  तक  है .

01 जून 2012

दस्तरखाने हज़रत इमाम मोहम्मद तकी (अ.स.)


रात मीरा रोड में हुसैन आलम के मकान पर दसवें इमाम, हज़रत इमाम मोहम्मद तकी (अ.स.) की मुनासिबत से  दस्तरखान था. जिसमें मुख्तलिफ किस्म की ग्जाएं थीं. करारी के मोमिनीन सिलसिला वार आ रहे थे. चना बटाटा काफी लज़ीज़ था.
अल्लाह तआला हुसैन आलम साहब की रोज़ी में बरकत अता करे. मीरा रोड में वोह वक्तन फवक्तन  अपने दौलत ख़ाने पर इस तरह के प्रोग्राम का इनेकाद करते रहते हैं.

 दस्तरखान पर अम्बाही, करारी के हाजी ज़की साहब भी मसरूफ हैं और हुसैन आलम मेहमान नवाज़ी करते हुए