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08 नवंबर 2012

दर की है ज़िद ........

मरहूम दबीर सीतापुरी अपने बेहतरीन अंदाज़ में 13 रजब के मौके पर क़सीदा पढ़ते हुए। 
सुनिए और उन्हें सूरह फातेहा से याद करिए। 
अल्लाह मरहूम पर रहमत नाजिल करे।

20 जुलाई 2012

इमाम महदी (अ.स.) की शान में सादिक़ रिज़वी का क़सीदा

मुंबई में मुक़ीम, करारी के शाएर सादिक रिज़वी साहब ने अपना कलाम शाबान के मौक़े पर My Karari के लिए खुसूसी तौर पर रिकॉर्ड करवाया 

05 जून 2012

13 रजब के मौके पर सादिक हसन रिज़वी का ताज़ा कसीदा My Karari के लिए


वेलादत  की  खबर  हैदर  की  पहुंची  दो  जहाँ  तक  है ,
गिरे  काबे  के  बुत  डर  कर  हदीसों  में  बयां  तक  है , 
है  काबा  मुन्तजिर  बिन्ते असद  के  पाक  कदमों  का , 
अली  के  वास्ते  जाये वेलादत  का  मकाँ  तक  है , 
बनेगा  फ़ातेमा  बिन्ते  असद  का  ज़चाखाना  यह , 
के  इस्तेकबाल   में  दीवारे काबा  शादमा  तक  है , 
अज़ल  का  नूर  दुनिया  में  हुआ  है  आज  जलवागर , 
सजी  बज्मे  वेलाये मुर्तजा  राहे जेना  तक  है , 
करेंगे  मीसमे  तम्मार  की  मानिंद  मिदहत  हम ,
अली  का  सच्चा  आशिक  दहर  में  पीरो जवाँ  तक  है ,
मुनाफ़िक़  जानवर  से  भी  गया  गुज़रा  न  हो  क्यों  कर , 
अकीदत  दहर  में  रखता  अली  से  बे-ज़ुबां  तक  है , 
बरहना  देख  कर  दुश्मन  की  जाँ  भी  बख्श  दी  हंसकर , 
अली  बुजदिल  अदू  के  इस  अमल  पर  मेहरबाँ  तक  है , 
अली  के  नाम  पर  सर  धुनते  हैं  अर्शी  फरिश्ते  तक , 
हुकूमत  Murtaza की  यह  ज़मीन  क्या  आसमाँ  तक  है ,
सुनाऊंगा   कसीदे  मर  के  मरकद  में  फरिश्तों  को , 
अली  की  मद हा     का  शैदा  गिरोहे -कुद्सियाँ  तक  है , 
अकीदे  की  न  पूछो  इन्तेहा  बीमार  सादिक  से , 
अली  के  नाम  से  उल्फत  तो  क़ल्बे नातवां  तक  है .

05 मार्च 2012

ज़बान वक्फ है बस मदहे अस्करी के लिए

इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की विलादत के मौके पर मीर हसन मीर की एक मंक़बत:


न खुसरवी के लिए है न अफसरी के लिए
ज़बान वक्फ है बस मदहे अस्करी के लिए

अगर न मिलती इन्हें नूरे अस्करी की ज़कात
तरसते चाँद सितारे भी रौशनी के लिए

गिराया आप का रौज़ा जिन्हों ने ऐ मौला
शिकार पहला बनेंगे वह आखिरी के लिए

इमाम फिर से बुलाएं मुझे भी सामर्रा
तरस रही है जबीं कब से बंदगी के लिए

मेरे इमाम का हमसर वह कैसे लाते भला
मिला न जब कोई क़मबर की हम्सरी के लिए

यह बोले दार पे मीसम मैं कैसे रुक जाऊं 
ज़बां मिली है मुझे सिर्फ अली अली के लिए

अली को देख के बालिं पर मैं पुकारूँगा
ऐ मेरी मौत ठहर जा तू दो घडी के लिए

हमें यह फख्र के हम उन के दर के नौकर हैं
फ़रिश्ते खुद जहाँ आते हैं नौकरी के लिए

नबी की आल से टकराए क्या ज़रूरी है
तरीके और भी राएज हैं ख़ुदकुशी के लिए

अलम बराए सहबा था जंगे खैबर में
अलिफ़ से सब के लिए ऍन से अली के लिए  

04 मार्च 2012

सरकार हैदर के मकान पर कसीदा की महफिल

कल रात  पारा के  सरकार हैदर रिज़वी  के मकान पर इमाम  हसन अस्करी (अ.स.) के रोज़े विलादत के सिलसिले में एक  कसीदा  की महफिल का इनेकाद किया गया. यहाँ करारी से ताल्लुक रखने वाले मोमिनीन जमा हो गए. ग्यारहवें इमाम की शान में कसीदा और मन्क़बत पढ़ी गई. जिस में डाक्टर अब्बास आलम, तूसी, ज़हीरुल, ज़व्वार, जावेद रिज़वी, हसन इलाहाबादी और शमीम अब्बास ने हिस्सा लिया.
आखिर में मौलाना एहसान हैदर जवादी ने एक मुख़्तसर सी तक़रीर करके प्रोग्राम का इख्तेताम किया.
मुर्ग़ की लज़ीज़ बिरयानी से मोमिनीन ने लुत्फ़ उठाया.
नीचे इसी महफ़िल के दो कलाम का विडियो है, देखिए और comment कीजिए.


28 सितंबर 2010

खुर्शीद मुज़फ्फर नगरी हिन्दुस्तान के मशहूर कसीदा पढने वालों में शुमार किये जाते हैं. उनकी आवाज़ का जादू सुनने वाले को मसहूर कर देता है. नीचे विडियो में उन्हों ने वोह कसीदा पढ़ा है जो तकरीबन 15 से 20 साल पुराना है. मगर जब वोह अपने मखसूस अंदाज़ में पढ़ते हैं तो बिलकुल ताज़ा मालूम होता है. सुनने वाला चाहे कितना ही थका हुआ हो वोह अपनी थकान को भूल कर अहले बैत की मोहब्बत में डूब जाता है. खुदा, खुर्शीद भाई की आवाज़ को हमेशा तरो ताज़ा रखे .

28 अगस्त 2010

इमाम हसन (अ.स.) की विलादत के मौके पर एक और कसीदा

इमाम हसन (अ.स.) की विलादत के मौके पर एक और कसीदा जिसे मुफ्ती गंज, लखनऊ के मशहूर शाएर जनाब असद नकवी नसीराबादी ने Mumbai Shia News के ख़ास तौर पर रिकाड करवाया . आप भी उनके खुसूसी अंदाज़ से मेह्जूज़ हों .

16 जुलाई 2010

इमाम हुसैन (अ.स.) पर कसीदा

तीन शाबान, हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की विलादत का दिन है, यह विडियो पाकिस्तान के एक अहले सुन्नत जाकिर का हैं जिन्हों ने इसे पढ़ते हुए समझाने की कोशिश भी की है.