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17 नवंबर 2010

करारी के सफ़र से वापसी

करारी में अगर बिजली अच्छी आ रही हो और मौसम भी खुशगवार हो तो वहाँ से कहीं बाहर जाने का जी नहीं चाहता. इतवार 14 नवम्बर का महानगरी से टिकट होने के बा वजूद बॉम्बे आने का जी नहीं चाह रहा था. सुबह इलाहाबाद के लिए पहली बस 7 बजे की थी. बस में मुसाफिर कम थे. उमूमन दो घंटे में इलाहाबाद पहुंचाने वाली यह मिनी बस सिर्फ डेढ़ घंटे में पहुँच गई. किराया सिर्फ पचीस रूपया. लेकिन बस से उतरकर साइकिल रिक्शा वाले ने करेली कालोनी का बीस रूपया किराया  लिया. मौलाना अली आबिद साहब के दामाद, जनाब मज्जन साहब के घर सामान रखा और A ब्लाक की जानिब रवाना हुए. जियारत खालू की अयादत करनी थी. उनके जोड़ों में दर्द और बुखार ने उन्हें कमज़ोर कर दिया था.
Janab Shafi Haider Rizvi
अस्सन भाई का घर करीब था . मज्जन के साथ उनसे भी मुलाक़ात की. अग्यौना के  शफी दादा भी बहुत दिनों से अलील थे . कमजोरी इतनी की चलना फिरना बंद हो गया. सिर्फ उठ कर बैठ सकते हैं. लेकिन इस बीमारी के बावोजूद  उनकी ज़राफ़त में कमी नहीं आई . कहने लगे की : "करारी जाने का बहुत जी चाहता है." शफी हैदर दादा की उम्र 80 के करीब है. उनके बड़े भाई वसी हैदर का कम उम्र में इन्तेकाल हो गया था. मरहूम का रिश्ता मुज़फ्फर नगर में हुआ था. मरहूम हमारे खुसरे मोहतरम अल हाज सय्यद मोहम्मद अली आसिफ जैदी के हकीकी बहनोई थे.
अब बारी थी हामिद चाचा से मुलाक़ात की. उनकी भी तबियत ना साज़ रहती है. रानी मंडी में उनके दौलत खाने पहुँचने पर यह दुआ कर रहे थे की वोह घर पर मिल जाएँ. दुआ कुबूल हुई. वोह घर पर मौजूद  थे और मज्जन वकील साहब के नौहों का मजमुआ "सहाबे ग़म " जो उर्दू ज़बान में छप चुका  है और हिंदी ज़बान में छपने जा रहा  है , की प्रूफ रीडिंग कर रहे थे.
हमें देखते ही सब लपेट कर रख दिया और हम लोग देर तक गुफ्तगू करते रहे . कुछ पुरानी यादें, कुछ अलालत का ज़िक्र, कुछ करारी के बारे में और फिर शेरोशएरी का तज्केरा. हामिद चचा ने ग़ज़ल, मंक़बत और मरसियों के बंद अपने खुसूसी अंदाज़ में सुनाए. नीचे मेराज फैजाबादी के चंद शेर आप ने पेश किये.
महानगरी 2.40 PM पर बनारस से इलाहाबाद आती है और 3.10 PM पर बॉम्बे के लिए रवाना होती है. वक़्त कम था. मज्जन ने लज़ीज़ मुर्ग की बिरयानी बनवाई थी. खाना खाने के बाद मज्जन ने इलाहाबाद स्टेशन पहुँचाया.

19 अप्रैल 2010

Nikah Read by Maulana Ali Aabid Sahab

This video is of a Nikah read by Maulana Sayed Ali Aabid sahab. He was the Vakeel of his grand-daughter. The daughter of Samar Hasan Rizvi, Maulana's second son. This was held in the last week of March 2010 in Mumbra nearby Bombay City.

03 अप्रैल 2010

Marriage of Samar Hasan's Daughter


The marriage of Samar Hasan's daughter took place on 27th March in Mumbra, on the outskirts of Bombay. The groom is the son of Janab Saeedul Hasan. They live in Santacruz east. The boy is employed in a corporate firm on a senior post. The father of Samar, Maulana Ali Aabid sahab has come a long way from London to grace the wedding of his grand daughter. The whole family gathered on this auspicious occasion.

The photograph is of Maulana Aabid sahab and brother of Samar, Maulana Mohsin. reading the nikah nama very carefuly.

Another photograph has the groom and on left is his father. On right is Maulana Ali Aabid, Maulana Mohsin.