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15 सितंबर 2012
"एहानते रसूल" की मज़म्मत पर इरफ़ान इलाहाबादी के चार मिसरे
अफ़सोस का मक़ाम है इरफ़ान जाने क्यूँ ?
तौहीने मुस्तफा प भी लब खोलते नहीं
हैरत ये है की हिंद के हिन्दू हैं मोतरिज़
सब बोलते हैं पर ये अरब बोलते नहीं
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