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30 अप्रैल 2018

मौलाना सिब्ते हसन साहब मरहूम, हिंदो-पाक के पहले ख़तीब




मौलाना सिब्ते हसन साहब मरहूम 
बर्रे सग़ीर के पहले ख़तीब,
मुहर्रम में 
मरसिया,
सोज़,
सलाम,
रौज़ा ख्वानी को 
खिताबत में तब्दील करनेवाले ज़ाकिर
जिन्हों ने मजलिसे अजा में 
खिताबत के फन को राएज किया 





26 जून 2014

मर्हूमा सग़ीर फ़ातेमा बिन्ते सफ़दर हुसैन के इसाले सवाब की मजलिस


आज साहबज़ादे भाई के मकान पर उनकी वालिदा मर्हूमा 
सग़ीर फ़ातेमा बिन्ते सफ़दर हुसैन के इसाले सवाब की मजलिस है. 
वक़्त: 9 बजे शब. 
मज़ीद मालूमात के लिए राबिता करें. 
फ़ोन: 09969153744

22 सितंबर 2013

समर हसन की जानिब से मुम्बरा में तशक्कुर की महफ़िल

कल रात मुम्बरा में समर हसन रिज़वी ने अपने फरजंद अरमान रिज़वी के शिफ़ा याब होने पर एक महफ़िल का इनेक़ाद  किया।  
नमाज़े मग़रिब के बाद इस मुख़्तसर से प्रोग्राम में हलचल आज़मी और मोहसिन जैदी साहेबान ने अपना कलाम पढ़ा और मौलाना एहसान हैदर साहब ने तक़रीर की. 
सोहाना कंपाउंड की मस्जिद में हुवे इस प्रोग्राम का इफ्तेताह खुद समर हसन ने किया।
समर हसन अपना कलाम पेश करते हुए 
आज इसी सोहाना में एक मजलिसे तरहीम बाद नमाज़े मग़रिब रखी गई जिसमें मौलाना मुन्तसिर साहब (मोहसिन) खिताबत फ़रमाएंगे। 
यह मजलिस समर हसन की मरहूमा वालेदा के ईसाले सवाब के लिए है.  

17 जुलाई 2013

मुंबई के जैनाबिया इमाम बाड़े में मजलिसे तरहीम

मंगल 16 जुलाई को ज़ेनाबिया इमामबाड़े में मरहूम सय्यद ग़ुलाम हसनैन करारवी की 17 वीं  बरसी पर मजलिसे अज़ा  इनेक़ाद किया गया था। 
तिलावते कुरआन मजीद की तिलावत शमीम करारवी ने की, सोज़ ख्वानी नय्यर जौनपुरी ने की और मोमिनीन को हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हसनैन ने खिताब किया।
मजलिस के बाद इफ्तार का भी इंतज़ाम था। मुंबई के कोने कोने से  दोस्त, अहबाब,  अज़ीज़ो अकारिब ने शिरकत की।
शमीम क़ुरआन की तिलावत करते हुए 

04 अप्रैल 2013

नमाज़े मग्रेबैन के बाद मजलिस

अभी नमाज़े मग्रेबैन के फ़ौरन बाद ईसाले सवाब की एक मजलिस करारी शिया जामे मस्जिद में होने जा रही है जिसकी खिताबत क़ुम ईरान से आए हुए मौलाना जैगमुर रिज़वी करने वाले है। 
यह मजलिस मरहूम सय्यद मंज़ूर हसन रिज़वी, मरहूमा कनीज़ कुबरा और मरहूम सय्यद ग़ुलाम हसनैन करार्वी के ईसाले सवाब के लिए रखी  गई है। 
आप से गुज़ारिश है की इनके लिए एक सुरा फातेहा ख़त्म करें। 

20 जनवरी 2013

कर्बला में सोने वालो माहपारो अलविदा

आज करारी में जुलूसे अमारी बड़ी शानो शौकत के साथ इखतिताम पज़ीर हुवा। सर्द लहर के बावोजूद भारी तादाद में अज़ादारों  ने शिरकत की।  


15 जनवरी 2013

मालाड, मुंबई में जुलूसे अमारी

कल रात मालोनी में जुलूसे अमारी बरामद हुआ। 
इफ्तेताही तक़रीर मौलाना मोहसिन (इंदौर) ने पढ़ी और इख्तेतेमी तक़रीर मौलन हसनैन करारवी ने की।
शहर की पांच अंजुमनों ने हिस्सा लिया।
अंजुमने मोहफिज़े इस्लाम ने इस जुलूस का एहतिमाम किया। 

13 जनवरी 2013

तनहा पिसर की मय्यत जब शाह ने उठाई

मौलाना कमर महदी के घर आज मजलिस के बाद ज़व्वार (फ़िरोज़ ) का पढ़ा हुवा नौहा।
 

15 नवंबर 2012

ग्यारह मुहर्रम को मजलिसे तरहीम

मरहूम मोहम्मद अख्तर आबाद हुसैन 
और मरहूम सय्यद असरार हुसैन (बेच्चन बाबा)
के ईसाले सवाब की मजलिस 

03 मार्च 2012

अबू मोहम्मद, मुबारक हो


अबू मोहम्मद साहब करारी की फ़अआल शख्सियतों में से एक है. दीन की गुफ्तगू हो या समाजी, आप पेश पेश रहते हैं. यही नहीं, बल्कि मजालिस की पेश्खानी अपने अनोखे और जोशीले अंदाज़ में मर्सिया पढ़ कर करते हैं. यह मरासी अक्सर तबलीगी और इन्क़लाबी होते हैं.
आज करारी में उनके दौलतखाने पर बरात की आमद है. उनकी दोख्तर सदफ का अकद नजरुल महदी के हमराह होना है.
My Karari की जानिब से उनको और उनके ख़ानदान को बहुत बहुत मुबारकबाद.

05 फ़रवरी 2012

करारी में मजलिस के दौरान जाकिर पर एतेराज़

करारी शिया जामा मस्जिद में मौलाना गरवी साहब मजलिस पढ़ते हुए.

करारी शिया जामा मस्जिद में उस वक़्त हंगामा हो गया जब मौलाना गरवी साहब (अहमदाबाद) ने अपनी मजलिस की शुरुआत करारी वालों पर अफ़सोस जताते हुए किया. और कहा की उनके लिए यह खबर गिरां गुजरी के करारी की इसी मस्जिद में ईदे ग़दीर की नमाज़ बा जमाअत हुई.
इस बात पर मजलिस में शरीक मोमिनीन ने ज़ेरे मिम्बर इस खबर की तरदीद की और कहा की मौलाना साहब पहले आप लोगों से तस्दीक कर लें उसके बाद इस तरह से मिम्बर से माईक पर इजहारे अफसोस करें.
मजलिस में बहेस छिड गई और मौलाना साहब ने अपने अलफ़ाज़ वापस लेते हुए मजलिस को आगे बढाया.
यह मजलिस मरहूम मोहम्मद रज़ा के ईसाले सवाब के लिए रखी गई थी और यह सालाना मजलिस 7 रबीउल अव्वल को नमाज़े मग्रबैन के बाद होती है.
ईदे ग़दीर में नमाज़े जमाअत की बहेस मजलिस के बाद भी जारी रही. मोमिनीन ने मौलाना गरवी साहब को समझाया के आइन्दा कोई इस तरह की गुफ्तगू सरे मिम्बर करने से पहले उसकी मुकम्मल तहकीक और तस्दीक कर लें वरना समाज में बिला वजह इख्तेलाफ पैदा होजाता है.
करारी में कोई ऐसा वाक़ेया पेश नहीं आया और न किसी ने ईदे ग़दीर की नमाज़ बा जमाअत  पढ़ी और न पढ़ाई. 

31 जनवरी 2012

आज नमाज़े मग्रबैन के बाद मजलिसे तरहीम

करारी शिया जामे मस्जिद में मरहूम सय्यद मोहम्मद रेज़ा की बरसी के मौके पर आज नमाज़े मग्रबैन के बाद मजलिसे तरहीम का इनेकाद  किया गया है जिसमें मौलाना मोहम्मद रेज़ा (गरवी) खिताबत फरमाएंगे. आप से सुरह फातेहा की गुज़ारिश  है.
   

30 जनवरी 2012

जावेद रिज़वी के मकान पर आज रात में मजलिस

मरहूम सय्यद ग़ुलाम हसनैन करारवी
 आज रात 8 बजे करारी में जावेद रिज़वी के मकान पर मरहूम सय्यद ग़ुलाम हसनैन करार्वी के ईसाले सवाब की मजलिस रखी गई है. जिसे  मौलाना जैगमुर रिज़वी खिताब फ़रमाएँगे.
मोमिनीन से ज्यादा से ज्यादा तादाद में शिरकत की दरखास्त है.   

04 जनवरी 2012

मलाड मुंबई में मरहूम हामिद रिज़वी के ईसाले सवाब की मजलिस


कल रात मलाड मालोनी में मरहूम हामिद रिज़वी इब्ने मोहम्मद तकी के ईसाले सवाब के लिए महफिले मुहिब्बाने हुसैन में एक मजलिस का इनेकाद किया गया.
मौलाना रहमान अली रूहानी ने जाकरी फरमाई.
मजलिस के बाद मरहूम की याद में दो नौहे पढ़े गए जिसे मरहूम बड़ी ख़ूबसूरती से पढ़ा करते थे और जिस पर ज़ोरदार मातम हुआ करता था. वोह थे "लाचार हुसैना" और "ख़ाक पे बीबी न सो, बाली सकीना उठो".
इस मजलिसो मातम का एहतिमाम अंजुमने मुहाफ़िज़े इस्लाम, इलाहबाद ने किया था.

12 दिसंबर 2011

करारी के ओलामा के खिलाफ साज़िश का पर्दा फाश

करारी में चंद शरपसंद अनासिर, फासिक और बेदीन अफराद ने करारी के ओलामा को बदनाम करने की साजिश रची थी जिस का पर्दा फाश हो गया.
एक जय्यिद और बुज़ुर्ग आलिम दीन के नाम से मुहर्रम से पहले एक परचा छपवाया. इस परचे में महीनी यह थी के इसमें पहले करारी में निकलने वाले जुलूस की फेहरिस्त थी और आखिर में एक नोट लगी हुई थी.
यह नोट करारी के एक बुज़ुर्ग आलिम की तरफ मंसूब थी. इस आलिम के पीछे बहुत दिन से लोग ताक में लगे थे क्यूंकि यह मिम्बर पर अक्सर हक और खरी खरी बात करता था. मिम्बर से हक बात कहने में अपनी औलाद को भी नहीं बख्शा.

नीचे दर्ज अहेम नुक्तों ने इन शर पसंद अफराद की साज़िश को बेनकाब करदिया.

1 - इस आलिम के Rizvi खानदान से इतने अच्छे ताल्लुकात थे (9 मुहर्रम की रिज़वी कॉलेज की मजलिस इन्हीं से पढवाई जाती है) की अगर उन्हें इतनी बड़ी बात कहनी होती तो पहले वोह राबता करते और तस्दीक करते. इसी 9 मुहर्रम को वोह खुश अख्लाकी से कॉलेज के बंगले पर मिले.

2 - दूसरा यह इतना बुज़ुर्ग आलिम जो हव्ज़ाए इल्मिया से Retire हुआ हो और अपनी ज़िन्दगी दरसे अखलाक देने में गुजारी हो वोह कभी इतनी ओछी, पस्त और गिरी हुई बात नहीं कर सकता. इस आलिमे दीन को पता है किसी इलाके में रहने वाला अगर अपनी बस्ती के जुलूस या मजलिस के बारे में जानकारी नहीं रखता तो वोह कोई ऐब नहीं है. बहुत से अफराद ऐसे हैं जो शहरों में रहते हैं और  अपनी बस्ती की तफ्सीलात नहीं जानते, लेकिन अपने इलाके से जुड़े हुए हैं और अपनी बस्ती की तरक्की के लिए अस्पताल, स्कूल और कॉलेज तामीर करने के काम करते हैं जिस से लोग अपना निजी फ़ाएदा भी उठाते हैं और चंदा भी ले जाते हैं.

3 - सब से बड़ी दलील इस परचे के पीछे मुजरिमाना ज़िन्दगी गुज़ारने वालों की यह है के उन्हों ने ऐसे आलिमे दीन के नाम से मंसूब किया है जिसने अपनी दीनी तालीम लखनऊ या बनारस में नहीं हासिल की बल्कि नजफे अशरफ के बड़े बड़े अयातुल्लाह और मराजे किराम से दरस हासिल किया. और यह आलिमे दीन इतनी बात ज़रूर जानता है की अपनी बस्ती के मुहर्रम की मजलिस और जुलूस की तफ्सीलात न जान्ने वाला "शिय्यत से खारिज" नहीं हो सकता, क्यूंकि यह अक्ल और शरीअत के मनाफ़ी है.

4 - यह भी जानकार आप लोगों को हैरत होगी की इस handbill को जिस आलिमे दीन से मंसूब किया उसके नाम के साथ उसकी दस्तखत (signature ) भी नहीं है. बिला दस्तखत कोई भी परचा किसी रद्दी की जीनत ही बन सकता है.

शरपसंदों की तरफ से करारी तकसीम किया गया परचा.