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19 मई 2020

यौमे क़ुद्स आख़िर क्या है? और माहे रमज़ान में क्यों मनाया जाता है?

क़ुद्स की तारीख़ समझने के लिए सबसे पहले हमें यह पता होना ज़रूरी है कि ईरान में सन 1979 में इस्लामी इन्क़लाब के रहबर हज़रत आयतुल्लाह इमाम ख़ुमैनी साहब ने यह एलान किया था कि माहे रमज़ान के अलविदा जुमे को सारी दुनिया क़ुद्स दिवस की शक्ल में मनाएं।

दरअसल क़ुद्स का सीधा राब्ता मुसलमानों के क़िब्ला ए अव्वल बैतूल मुक़द्दस यानी मस्जिदे अक़्सा जो कि फ़िलिस्तीन में है, उसपर इस्राईल ने आज से 72 साल पहले तक़रीबन सन 1948 में नाजायज़ कब्ज़ा कर लिया था जो आज तक क़ायम है। इस्लामी तारीख़ के मुताबिक़ ख़ानए काबा से पहले मस्जिदे अक़्सा ही मुसलमानों का क़िब्ला हुआ करती थी और सारी दुनिया के मुसलमान बैतूल मुक़द्दस की तरफ़ (चौदह साल तक) रुख़ करके नमाज़ पढ़ते थे, उसके बाद ख़ुदा के हुक्म से क़िब्ला बैतूल मुक़द्दस से बदल कर ख़ानए काबा कर दिया गया था जो अभी भी मौजूदा क़िब्ला है। तारीख़ के मुताबिक़ मस्जिदे अक़्सा सिर्फ़ पहला क़िब्ला ही नहीं बल्कि कुछ और वजह से भी मुसलमानों के लिए खास और अहम है। रसूले ख़ुदा (स) अपनी ज़िन्दगी में मस्जिदे अक़्सा तशरीफ़ ले गए थे और वही से आप मेराज पर गए थे। इसी तरह इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के हवाले से हदीस में मिलता है कि आप फ़रमाते है: मस्जिदे अक़्सा इस्लाम की एक बहुत अहम मस्जिद है और यहां पर नमाज़ और इबादत करने का बहुत सवाब है। बहुत ही अफ़सोस की बात है कि यह मस्जिद आज ज़ालिम यहूदियों के नाजायज़ क़ब्ज़े में है।

इसकी शुरुवात सबसे पहले सन 1917 में हुई जब ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री जेम्स बिल्फौर ने फ़िलिस्तीन में एक यहूदी मुल्क़ बनाने की पेशकश रखी और कहा कि इस काम में लंदन पूरी तरह से मदद करेगा और उसके बाद हुआ भी यही कि धीरे धीरे दुनिया भर के यहूदियों को फ़िलिस्तीन पहुंचाया जाने लगा और बिलआख़िर 15 मई सन 1948 में इस्राईल को एक यहूदी देश की शक्ल में मंजूरी दे दी गई और दुनिया में पहली बार इस्राईल नाम का एक नजीस यहूदी मुल्क़ वजूद में आया। इसके बाद इस्राईल और अरब मुल्क़ों के दरमियान बहुत सी जंगे हुई मगर अरब मुल्क़ हार गए और काफ़ी जान माल का नुक़सान हो जाने और अपनी राज गद्दियां बचाने के ख़ौफ़ से सारे अरब मुल्क़ ख़ामोश हो गए और उनकी ख़ामोशी को अरब मुल्क़ों की तरफ़ से हरी झंडी भी मान लिया गया। जब सारे अरब मुल्क़ थक हार कर अपने मफ़ाद के ख़ातिर ख़ामोश हो गए तो ऐसे हालात में फिर वह मुजाहिदे मर्दे मैदान खड़ा हुआ जिसे दुनिया रूहुल्लाह अल मूसवी, इमाम ख़ुमैनी के नाम से जानती है।

तक़रीबन सन 1979 में इमाम ख़ुमैनी साहब ने नाजायज़ इस्राईली हुकूमत के मुक़ाबले में बैतूल मुक़द्दस की आज़ादी के लिए माहे रमज़ान के आख़िरी अलविदा जुमे को यौमे क़ुद्स का नाम दिया और अपने अहम पैग़ाम में आपने यह एलान किया और तक़रीबन सभी मुस्लिम और अरब हुकूमतों के साथ साथ पूरी दुनिया को इस्राईली फ़ित्ने के बारे में आगाह किया और सारी दुनिया के मुसलमानों से अपील की कि वह इस नाजायज़ क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ आपस में एकजुट हो जाएं और हर साल रमज़ान के अलविदा जुमे को यौमे क़ुद्स मनाएं और मुसलमानों के इस्लामी क़ानूनों और उनके हुक़ूक़ के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करें। जहां इमाम ख़ुमैनी ने यौमे क़ुद्स को इस्लाम के ज़िंदा होने का दिन क़रार दिया वहीं आपके अलावा बहुत से और दीगर आयतुल्लाह और इस्लामी उलमा ने भी यौमे क़ुद्स को तमाम मुसलमानों की इस्लामी ज़िम्मेदारी क़रार दी। लिहाज़ा सन 1979 में इमाम ख़ुमैनी साहब के इसी एलान के बाद से आज तक न सिर्फ़ भारत बल्कि सारी दुनिया के तमाम मुल्क़ों में जहां जहां भी मुसलमान, ख़ास तौर पर शिया मुस्लिम रहते है, वह माहे रमज़ान के अलविदा जुमे को मस्जिदे अक़्सा और फ़िलिस्तीनियों की आज़ादी के लिए एहतजाज करते हैं और रैलियां निकालते हैं।

हमे यह भी मालूम होना चाहिए कि आज तक फ़िलिस्तीनी अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं और जद्दोजहद कर रहे हैं और इस्राईल अपनी भरपूर ज़ालिम शैतानी ताक़त से उनको कुचलता आ रहा है, जब हम अपने घर में पुर सुकून होकर रोज़ा इफ़्तार करते हैं उस वक़्त उसी फ़िलिस्तीन में हज़ारों मुसलमान इस्राईली बमों का निशाना बनते हैं, उनकी इज़्ज़त और नामूस के साथ ज़ुल्म किया जाता है और यह सब आज तक जारी है और इस ज़ुल्म पर सारी दुनिया के मुमालिक ख़ामोश है, क्योंकि इस्राईल को अमरीका और लंदन का साथ मिला हुआ है।

इस साल दुनिया भर में लॉकडाउन की वजह से नमाज़े जुमा और एहतजाजी रैलियां मुमकिन नहीं है इसलिए इस बार हमें चाहिए कि इस्राईल के ख़िलाफ़ और बैतूल मुक़द्दस के हक़ में अपनी आवाज़ को ऑनलाइन बुलंद करें और जहां तक जितना मुमकिन हो सके मोमिनीन को इसके बारे में बताएं।

अल्लाह मज़लूमों के हक़ में हम सबकी दुआओं को क़ुबूल फ़रमाएं और ज़ालिमीन को निस्त व नाबूद करें... इंशा अल्लाह।

अंजुमने अब्बासिया, नगरम, आंध्र प्रदेश, भारत

26 जुलाई 2014

"ग्रेटर इस्राईल" एक ख़्वाब

हर साल रमज़ान के महीने के आखरी जुमा को फिलिस्तीन और इस्लाम के पहले क़िबला की आज़ादी के लिए रखा है. क्या यह कोद्स इतना अहम मुद्दा है मामूजान?
मामूजान: इस्लामी दुनिया के लिए कोद्स सब कुछ है. यह नबियों की सरज़मीन है. किब्लए अव्वल है. फिलिस्तीन की सरज़मीन पर अंग्रेजों ने यहूदियों को बसाया था और उन्हों ने आहिस्ता आहिस्ता फिलिस्तीनियों को शरणार्थी बना दिया और खुद पूरे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया. 
जर्मनी ने यहूदियों को क़त्ल किया लेकिन सज़ा फिलिस्तीनी मुसलमानों को दी गई.
जब से इजराइल का नाजाएज़ क़ब्ज़ा हुआ है उस वक़्त से अरब दुनिया में खल्फिशार है. फिलिस्तीन के अतराफ में अरब ममालिक में कहीं भी लोकतंत्र नहीं है. एक लेबनान है जहाँ मतदान होता है लेकिन उसे भी पश्चिमी देशों ने शिया, सुन्नी और ईसाई में बाँट रखा है.
मुसलमानों का सब से गद्दार मुल्क मिस्र रहा है. हुस्नी मुबारक से नजात मिलने के बाद मोहम्मद मुर्सी ने लोकतंत्र तरीके से राष्ट्रपति का पद संभाला. लेकिन इजराइल और अमरीका मिलकर एक डिक्टेटर को लाए और मुर्सी को जेल भेज दिया. 
दर अस्ल यहूदियों की योजना इस इलाक़े में "ग्रेटर इजराइल" की है. जिस की सीमा पश्चिम में मिस्र की नील दरया से लेकर पूरब में इराक़ की फ़ुरात दरया तक है. इनको यह पूरा इलाक़ा अपने क़ब्ज़े में लेना है. पहले से ही अमरीका, यूरोप, यूनाइटेड राष्ट्र और अरब लीग उसके क़ब्ज़े में हैं. शाम और इराक में अपने एजेंट ISIL और ISIS वहां तबाही मचा रखी है. मुसलमानों का गला काट काट कर नारए तकबीर बुलंद कर रहे हैं. जब इन मुल्कों पर क़ब्ज़ा हो जायेगा तो तेल, गैस और पूरी दुनिया पर क़ब्ज़ा हो जाएगा.
खुद को खलीफतुल मुस्लिमीन कहने वाला अबू बकर बघ्दादी ग़ज़ा में बच्चों के मारे जाने पर खामोश है. बल्कि यह लोग इराक़ और शाम में फिलिस्तीन का परचम जला रहे हैं. इस अबू बकर ने इजराइल के खिलाफ एक लफ्ज़ नहीं कहा.
एक ईरान है जिस ने इजराइल की योजनाओं को नुकसान पहुँचाया है. ईरान ने कोद्स की आज़ादी को ज़िन्दा रखा है जबके अरब हुकूमतें तमाशा देख रही हैं. 
मुसलमानों की यह बदकिस्मती है की किब्लाए अव्वल यहूदियों के क़ब्ज़े में है और मस्जिदे अक्सा शहीद करना चाहते हैं. 
मौजूदा क़िबला सउदीयोँ के क़ब्ज़े में हैं जो जन्नतुल बक़ी की तरह गुम्बदे खिजरा गिराना चाहते हैं.