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Irfaan Allahabadi, a young poet |
वारिसे अह्मदे मुख्तार तक आते आते
हक तलफ हो गया हक़दार तक आते आते
खुम में अहमद से तो कहते रहे बखखिन बखखिन
फिर गए हैदरे कररार तक आते आते
दम निकल जाता है ईमान का बे हुब्बे अली
खानाए काबा की दीवार तक आते आते
रोकने निकली थी हैदर के फ़ज़ाइल दुनिया
थक गई मीसमे तम्मार तक आते आते
लोग समझे थे सिमट जाएगा ज़िक्रे हैदर
हक मगर फैल गया दार तक आते आते
या अली कहते ही इरफ़ान सहेम जाती हैं
मुश्किलें मुझ से गुनाहगार तक आते आते