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01 जनवरी 2012

हामिद चचा का एक यादगार विडियो

इस विडियो में:
करारी में मुहर्रम 2009 में हामिद चचा बॉम्बे वालों को मरसिया पढने का फन समझाते हुए और एक गैर मुस्लिम खातून मरसिया निगार का कलाम सुनाते  हुए. चूँकि यह विडियो मोबाइल से बनाया गया है इस लिए quality खराब है.


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30 दिसंबर 2011

आह! हामिद चचा

यह मरसिया "इल्मो अमल" के उन्वान से मरहूम सय्यद मोहम्मद हामिद रिज़वी ने मरहूम वालिदे अल्लाम सय्यद गुलाम हसनैन करारवी के चेहलुम पर करारी शिया जामे मस्जिद में पढ़ा था.
यह मरसिया मशहूर मरसिया निगार जनाब उम्मीद फाजली का है. जिस खूबसूरत अंदाज़ से हामिद चचा मरहूम ने पढ़ा है वोह काम उम्मीद फाजली खुद न कर सके.
वालिदे अल्लाम का चेहलुम फ़रवरी 1996  में हुवा   था.
मरसिया सुनने के बाद मरहूम को सुरे फातेहा से नवाजना न भूलें और आज नमाज़े वहशत पढना फरामोश न करें.
तद्फीन आज दर्याबाद, इलाहाबाद में शाम साढे 4 बजे के आस पास होगी.


17 नवंबर 2010

करारी के सफ़र से वापसी

करारी में अगर बिजली अच्छी आ रही हो और मौसम भी खुशगवार हो तो वहाँ से कहीं बाहर जाने का जी नहीं चाहता. इतवार 14 नवम्बर का महानगरी से टिकट होने के बा वजूद बॉम्बे आने का जी नहीं चाह रहा था. सुबह इलाहाबाद के लिए पहली बस 7 बजे की थी. बस में मुसाफिर कम थे. उमूमन दो घंटे में इलाहाबाद पहुंचाने वाली यह मिनी बस सिर्फ डेढ़ घंटे में पहुँच गई. किराया सिर्फ पचीस रूपया. लेकिन बस से उतरकर साइकिल रिक्शा वाले ने करेली कालोनी का बीस रूपया किराया  लिया. मौलाना अली आबिद साहब के दामाद, जनाब मज्जन साहब के घर सामान रखा और A ब्लाक की जानिब रवाना हुए. जियारत खालू की अयादत करनी थी. उनके जोड़ों में दर्द और बुखार ने उन्हें कमज़ोर कर दिया था.
Janab Shafi Haider Rizvi
अस्सन भाई का घर करीब था . मज्जन के साथ उनसे भी मुलाक़ात की. अग्यौना के  शफी दादा भी बहुत दिनों से अलील थे . कमजोरी इतनी की चलना फिरना बंद हो गया. सिर्फ उठ कर बैठ सकते हैं. लेकिन इस बीमारी के बावोजूद  उनकी ज़राफ़त में कमी नहीं आई . कहने लगे की : "करारी जाने का बहुत जी चाहता है." शफी हैदर दादा की उम्र 80 के करीब है. उनके बड़े भाई वसी हैदर का कम उम्र में इन्तेकाल हो गया था. मरहूम का रिश्ता मुज़फ्फर नगर में हुआ था. मरहूम हमारे खुसरे मोहतरम अल हाज सय्यद मोहम्मद अली आसिफ जैदी के हकीकी बहनोई थे.
अब बारी थी हामिद चाचा से मुलाक़ात की. उनकी भी तबियत ना साज़ रहती है. रानी मंडी में उनके दौलत खाने पहुँचने पर यह दुआ कर रहे थे की वोह घर पर मिल जाएँ. दुआ कुबूल हुई. वोह घर पर मौजूद  थे और मज्जन वकील साहब के नौहों का मजमुआ "सहाबे ग़म " जो उर्दू ज़बान में छप चुका  है और हिंदी ज़बान में छपने जा रहा  है , की प्रूफ रीडिंग कर रहे थे.
हमें देखते ही सब लपेट कर रख दिया और हम लोग देर तक गुफ्तगू करते रहे . कुछ पुरानी यादें, कुछ अलालत का ज़िक्र, कुछ करारी के बारे में और फिर शेरोशएरी का तज्केरा. हामिद चचा ने ग़ज़ल, मंक़बत और मरसियों के बंद अपने खुसूसी अंदाज़ में सुनाए. नीचे मेराज फैजाबादी के चंद शेर आप ने पेश किये.
महानगरी 2.40 PM पर बनारस से इलाहाबाद आती है और 3.10 PM पर बॉम्बे के लिए रवाना होती है. वक़्त कम था. मज्जन ने लज़ीज़ मुर्ग की बिरयानी बनवाई थी. खाना खाने के बाद मज्जन ने इलाहाबाद स्टेशन पहुँचाया.