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28 जनवरी 2011

मरहूम मज्जन वकील का चेहलुम 30 जनवरी को

मरहूम सय्यद मजहर अब्बास रिज़वी (मज्जन वकील)
मरहूम सय्यद मजहर अब्बास रिज़वी जो मज्जन वकील के नाम से जाने जाते थे, एक मुद्दत की अलालत के बाद इन्तेकाल कर गए.
मरहूम अच्छे शाएरे अहलेबैत (अ.स.) थे. उनके नौहों का मजमुआ 'सहाबे ग़म' उर्दू में छप चुका है और हिंदी ज़बान में आने वाला है.
मज्जन साहब एक कामयाब वकील थे. करारी जब 'टाउन एरिया ' घोषित हुआ तो आप ने भी चैरमैन के चुनाव में किस्मत आजमाई. लेकिन मौला से मोक़बला न कर सके. चुनावी पंडितों का ख़याल है की चुनाव प्रचार में ही वोह इन्साफ और बराबरी की बात करने लगे थे.
इन्साफ और बराबरी की बात बिरादरी से हज्म नहीं हो सकती. लोकतंत्र में नेता बनना है हो इन्साफ और बराबरी काम नहीं आती. लोकतंत्र में चापलूसी, ठगी, दोखा, फरेब, झूट, बेईमानी वगैरा की आवश्यकता होती है. इन्साफ और बराबरी आदमी अपने घर में लागू नहीं कर सकता. तो समाज में कैसे मुमकिन है.
ईमान दारी के चुनाव निशान पर कोई मोहर नहीं लगाता है.  नेता बनना है तो अपने को नीचा दिखाना होगा, घपला करने की सलाहियत पैदा करना पड़ेगी, अपनी ही कौम के घरों को नज़रे आतिश करवाने की हिम्मत जुटानी होती है. मुजरिमाना  ज़ेहनियत का हामिल होना होता है.
मरहूम मज्जन वकील इन सब मीजान पर पुरे नहीं उतर सके इसी लिए चैरमैनी का चुनाव हार गए और फिर कभी इस मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं की.
मरहूम का चेहलुम 30 जनवरी को शहर इलाहबाद में करेली कालोनी के लगन पैलेस  में  सुबह दस बजे है. आप लोगों से शिरकत की गुजारिश है. अगर शिरकत मुमकिन न हो तो एक सुरह फातेहा से याद कर लें. 

17 नवंबर 2010

करारी के सफ़र से वापसी

करारी में अगर बिजली अच्छी आ रही हो और मौसम भी खुशगवार हो तो वहाँ से कहीं बाहर जाने का जी नहीं चाहता. इतवार 14 नवम्बर का महानगरी से टिकट होने के बा वजूद बॉम्बे आने का जी नहीं चाह रहा था. सुबह इलाहाबाद के लिए पहली बस 7 बजे की थी. बस में मुसाफिर कम थे. उमूमन दो घंटे में इलाहाबाद पहुंचाने वाली यह मिनी बस सिर्फ डेढ़ घंटे में पहुँच गई. किराया सिर्फ पचीस रूपया. लेकिन बस से उतरकर साइकिल रिक्शा वाले ने करेली कालोनी का बीस रूपया किराया  लिया. मौलाना अली आबिद साहब के दामाद, जनाब मज्जन साहब के घर सामान रखा और A ब्लाक की जानिब रवाना हुए. जियारत खालू की अयादत करनी थी. उनके जोड़ों में दर्द और बुखार ने उन्हें कमज़ोर कर दिया था.
Janab Shafi Haider Rizvi
अस्सन भाई का घर करीब था . मज्जन के साथ उनसे भी मुलाक़ात की. अग्यौना के  शफी दादा भी बहुत दिनों से अलील थे . कमजोरी इतनी की चलना फिरना बंद हो गया. सिर्फ उठ कर बैठ सकते हैं. लेकिन इस बीमारी के बावोजूद  उनकी ज़राफ़त में कमी नहीं आई . कहने लगे की : "करारी जाने का बहुत जी चाहता है." शफी हैदर दादा की उम्र 80 के करीब है. उनके बड़े भाई वसी हैदर का कम उम्र में इन्तेकाल हो गया था. मरहूम का रिश्ता मुज़फ्फर नगर में हुआ था. मरहूम हमारे खुसरे मोहतरम अल हाज सय्यद मोहम्मद अली आसिफ जैदी के हकीकी बहनोई थे.
अब बारी थी हामिद चाचा से मुलाक़ात की. उनकी भी तबियत ना साज़ रहती है. रानी मंडी में उनके दौलत खाने पहुँचने पर यह दुआ कर रहे थे की वोह घर पर मिल जाएँ. दुआ कुबूल हुई. वोह घर पर मौजूद  थे और मज्जन वकील साहब के नौहों का मजमुआ "सहाबे ग़म " जो उर्दू ज़बान में छप चुका  है और हिंदी ज़बान में छपने जा रहा  है , की प्रूफ रीडिंग कर रहे थे.
हमें देखते ही सब लपेट कर रख दिया और हम लोग देर तक गुफ्तगू करते रहे . कुछ पुरानी यादें, कुछ अलालत का ज़िक्र, कुछ करारी के बारे में और फिर शेरोशएरी का तज्केरा. हामिद चचा ने ग़ज़ल, मंक़बत और मरसियों के बंद अपने खुसूसी अंदाज़ में सुनाए. नीचे मेराज फैजाबादी के चंद शेर आप ने पेश किये.
महानगरी 2.40 PM पर बनारस से इलाहाबाद आती है और 3.10 PM पर बॉम्बे के लिए रवाना होती है. वक़्त कम था. मज्जन ने लज़ीज़ मुर्ग की बिरयानी बनवाई थी. खाना खाने के बाद मज्जन ने इलाहाबाद स्टेशन पहुँचाया.