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30 अप्रैल 2018

मौलाना सिब्ते हसन साहब मरहूम, हिंदो-पाक के पहले ख़तीब




मौलाना सिब्ते हसन साहब मरहूम 
बर्रे सग़ीर के पहले ख़तीब,
मुहर्रम में 
मरसिया,
सोज़,
सलाम,
रौज़ा ख्वानी को 
खिताबत में तब्दील करनेवाले ज़ाकिर
जिन्हों ने मजलिसे अजा में 
खिताबत के फन को राएज किया 





13 जनवरी 2013

तनहा पिसर की मय्यत जब शाह ने उठाई

मौलाना कमर महदी के घर आज मजलिस के बाद ज़व्वार (फ़िरोज़ ) का पढ़ा हुवा नौहा।
 

22 दिसंबर 2012

ज़हनों में यह आवाज़ गूंजेगी बरसों

मरहूम सय्यद मोहम्मद हामिद रिज़वी का आठ रबिउल अव्वल में पढ़ा नौहा।

04 जनवरी 2012

मलाड मुंबई में मरहूम हामिद रिज़वी के ईसाले सवाब की मजलिस


कल रात मलाड मालोनी में मरहूम हामिद रिज़वी इब्ने मोहम्मद तकी के ईसाले सवाब के लिए महफिले मुहिब्बाने हुसैन में एक मजलिस का इनेकाद किया गया.
मौलाना रहमान अली रूहानी ने जाकरी फरमाई.
मजलिस के बाद मरहूम की याद में दो नौहे पढ़े गए जिसे मरहूम बड़ी ख़ूबसूरती से पढ़ा करते थे और जिस पर ज़ोरदार मातम हुआ करता था. वोह थे "लाचार हुसैना" और "ख़ाक पे बीबी न सो, बाली सकीना उठो".
इस मजलिसो मातम का एहतिमाम अंजुमने मुहाफ़िज़े इस्लाम, इलाहबाद ने किया था.

13 फ़रवरी 2011

करारी में जुलूसे अमारी: 2011

इलाहबाद दोआबा इलाके में, बल्कि अगर यह कहा जाए की पूरे उत्तर भारत में, या फिर पूरे हिन्दुस्तान में आठ रबीउल अव्वल को अमारी का जुलूस इस तरह नहीं बरामद होता जिस तरह करारी में होता है. जुलूस का नज़्म इतना आला है की दूर दराज़ से लोग इसकी ज़ियारत करने आते हैं.
शबीहे तबर्रुकात तो हर जगह मिल जाएंगी लेकिन शाम क़ैद खाना जैसी शबीह कहीं न मिलेगी. शबीह बरामद होते हुए तक़रीर हर जगह होगी लेकिन हामिद चचा के मुनफ़रिद अंदाज़ में कहीं सुनने न मिलेगा. मैदान में तक़रीर और नौहा पढने के लिए तख़्त मिल जाएंगे लेकिन यहाँ जैसा स्टेज  कहीं नज़र न आएगा.
इस जुलूस की कामयाबी का राज़ कारकुनान का  ख़ुलूस है. दिन रात मेहनत के बाद ही यह यादगार बनता है. Volunteer हजरात अपना बिल्ला फखरिया लगाए हुए अपने अपने कामों में  मसरूफ रहते हैं.
तश्हीर के लिए रंगीन और खुबसूरत हैंड बिल लोगों की तवज्जो अपनी तरफ खींचता हैं. जिस की वजह से अत्राफो अक्नाफ के साथ साथ बीरुनी मोमिनीन भी शिरकत करते हैं.
मौसम की शदीद ठंडक की वजह से जुलूस बरामद होने में ताखीर हो गई. पहली मजलिस के बाद जुमा की नमाज़ अदा की गई और फिर शबीहें बरामद हुईं. मेरठ से आए साहेबे बयाज़ ने बहुत अच्छा नौहा पढ़ कर माहौल को गरमा दिया. मीसम गोपालपुरी जो कई बरसों से मुसलसल शिरकत कर के नौहा पढ़ रहे थे इस साल किसी वजह से करारी नहीं पहुँच सके. खवातीन शबीहे ज़िन्दाने शाम की ज़ियारत मोकम्मल कर के अश्कबार आँखों से बाहर आतीं.
अब्बास रिज़वी के दिल्सोज़ नौहे ने अज़दारों को रुला दिया. ऐनुर रेज़ा (हुसैन) ने निजामत के फराएज़ अपने खुबसूरत अंदाज़ में अदा किए. इस तरह करारी वालों ने कर्बला से मदीना पहुंचे लुटे हुए काफले की याद मनाते हुए "कर्बला में सोनेवालो माहपारो  अलविदा " का नौहा पढ़कर पुर जोश मातम करते हुए अय्यामे अज़ा को अलविदा कहा. 

28 जनवरी 2011

मरहूम मज्जन वकील का चेहलुम 30 जनवरी को

मरहूम सय्यद मजहर अब्बास रिज़वी (मज्जन वकील)
मरहूम सय्यद मजहर अब्बास रिज़वी जो मज्जन वकील के नाम से जाने जाते थे, एक मुद्दत की अलालत के बाद इन्तेकाल कर गए.
मरहूम अच्छे शाएरे अहलेबैत (अ.स.) थे. उनके नौहों का मजमुआ 'सहाबे ग़म' उर्दू में छप चुका है और हिंदी ज़बान में आने वाला है.
मज्जन साहब एक कामयाब वकील थे. करारी जब 'टाउन एरिया ' घोषित हुआ तो आप ने भी चैरमैन के चुनाव में किस्मत आजमाई. लेकिन मौला से मोक़बला न कर सके. चुनावी पंडितों का ख़याल है की चुनाव प्रचार में ही वोह इन्साफ और बराबरी की बात करने लगे थे.
इन्साफ और बराबरी की बात बिरादरी से हज्म नहीं हो सकती. लोकतंत्र में नेता बनना है हो इन्साफ और बराबरी काम नहीं आती. लोकतंत्र में चापलूसी, ठगी, दोखा, फरेब, झूट, बेईमानी वगैरा की आवश्यकता होती है. इन्साफ और बराबरी आदमी अपने घर में लागू नहीं कर सकता. तो समाज में कैसे मुमकिन है.
ईमान दारी के चुनाव निशान पर कोई मोहर नहीं लगाता है.  नेता बनना है तो अपने को नीचा दिखाना होगा, घपला करने की सलाहियत पैदा करना पड़ेगी, अपनी ही कौम के घरों को नज़रे आतिश करवाने की हिम्मत जुटानी होती है. मुजरिमाना  ज़ेहनियत का हामिल होना होता है.
मरहूम मज्जन वकील इन सब मीजान पर पुरे नहीं उतर सके इसी लिए चैरमैनी का चुनाव हार गए और फिर कभी इस मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं की.
मरहूम का चेहलुम 30 जनवरी को शहर इलाहबाद में करेली कालोनी के लगन पैलेस  में  सुबह दस बजे है. आप लोगों से शिरकत की गुजारिश है. अगर शिरकत मुमकिन न हो तो एक सुरह फातेहा से याद कर लें. 

05 जनवरी 2011

जुलूसे सय्यादे सज्जाद में नौहा

यह नौहा 25  मुहर्रम के जुलूस के आखिर में पढ़ा गया. मुंबई के बान्द्रा के मशरिकी इलाके में यह जुलूस निकाला गया था. 

16 फ़रवरी 2010

Juloos-e-Amaari in Karari on 22nd Feb 2009

The famous Juloose Amaari in Karari, Allahabad is on 8th Rabiul Awwal which falls on Monday, 22nd Feb 2009. This is its 44th year. Guest and local Speakers. Guest and local nauha recitors. shabeehe mubarak of parchame Abbas (a.s.), Qabre Sakina, Amaari, Gehwara, Tabut and Zindaane Shaam are the main attraction of this Juloos. Those Kararians who want to contribute fund to this Juloos can transfer their amount to:

Ajuman Asgharia, Bank of Baroda, current a/c 10086, Karari Branch, Koshambee.
For more detail contact Ajaz Asghar cell no. 09335871112

21 मार्च 2009

Juloos-e-Amaari, Nauha by Abbas Rizvi

The video clip is of the Nauha recited by a youth Janab Abbas Rizvi s/o of Janab Mukhtar Rizvi. Abbas Rizvi started reciting nauhas since last 3 years. He is one of the best solo nauha reciter in and around Allahabad. The best part of his nauha recitation is that he recites sorrowful nauhas which were penned down more than 40/50 years. He was inspired by Mr. Jaddan who was very famous in 60s & 70s in Allahabad district. The nauha he has recited in this clip is on the day of Juloos-e-Amaari on 5th March 2008 in Karari. It was very popular 3 decades ago. May Allah give taufeeq to Abbas Rizvi so that he gives his maximum service in the azadaari of Imam Husain (a.s.).

28 सितंबर 2008