25 जनवरी 2012

इरफ़ान इलाहाबादी का कलाम


Irfaan Allahabadi, a young poet

वारिसे अह्मदे मुख्तार तक आते आते
हक तलफ हो गया हक़दार तक आते आते
खुम में अहमद से तो कहते रहे बखखिन बखखिन
फिर गए हैदरे कररार तक आते आते
दम निकल जाता है ईमान का बे हुब्बे अली
खानाए काबा की दीवार तक आते आते
रोकने निकली थी हैदर के फ़ज़ाइल दुनिया
थक गई मीसमे तम्मार तक आते आते
लोग समझे थे सिमट जाएगा ज़िक्रे हैदर
हक मगर फैल गया दार तक आते आते
या अली कहते ही इरफ़ान सहेम जाती हैं
मुश्किलें मुझ से गुनाहगार तक आते आते