29 जनवरी 2012

मरहूम ज़फर अब्बास आबिदी का चेहलुम

मरहूम सय्यद ज़फर अब्बास आबिदी 
आज इलाहाबाद में  अनवारुल  ओलूम  के  सामने  वाले  मैदान में मरहूम ज़फर अब्बास साहब के चेहलुम के  मौके पर सुबह दस बजे मजलिसे तरहीम का इनेकाद किया गया है. 
इलाहबाद का कोई ऐसा मर्द, औरत या बच्चा नहीं है जो मरहूम ज़फर अब्बास को न जानता रहा हो.
एक मुखलिस मुबललिग़. एक जाज़िब खतीब. नेक, भरोसेमंद, बा अमल जाकिर. मुख्तार नामाह पढने का फनकार, मिम्बर की जीनत. और सब से बड़ी सिफत; एक निहायत ही लोगों के काम आने वाला सादा इंसान. जब तक सेहत साथ दे रही थी, करारी से जुड़े हुए थे. 
हज का बेहतरीन रहबर. एक अरसा मुस्लिम टूर्स  के साथ होकर शिया हाजिओं को सहीह हज करवाते रहे. बाद में जब कंपनी कमज़ोर हो गई तो शिया प्राइवेट टूर में रहबरी की.
हिंदुस्तान और पाकिस्तान के हाजी ज़फर अब्बास के नाम से मानूस थे. हज के काफिले में खुसूसन खवातीन के  पूरी तरह मुआविन रहते. मक्का में होटल के कमरे के दरवाज़ों पर नाम बनाम हाज्जा को  पुकारते और हरम जाने के लिए आमादा करते.
जब भी मरहूम से मक्का या मदीना में हज के मौके पर हमसे मुलाक़ात होती तो हमारे वालिद को याद करते और लोगों से यह  कहते की "रज़ी मियां के वालिद (मरहूम गुलाम हसनैन करारवी) ने ही मुझे मुस्लिम टूर्स के साथ जाने पर जोर दिया ता की मोमिनीन हज के सही अरकान अदा कर सकें."
बहुत मोहब्बती, खादिमे कौम और मुन्कसिर मिज़ाज (आज के दौर में खादिमे कौम का मुन्कसिर मिज़ाज होना नायाब है, वोह खादिम कम और मखदूम जियादा होते हैं).
मरहूम हमेशा शेरवानी  में मलबूस होते. मुझे तो याद ही नहीं पड़ता के मैंने कभी  उन्हें बगैर शेरवानी के देखा हो. 
परवर दिगार मरहूम के दरजात में बुलंदी अता करे. मुमकिन है की जौनपुर की यह शख्सियत मैदाने महशर में इलाहबाद के मोमिनीन की शफाअत की सिफारिश करे.
आप से गुज़ारिश है की इस अज़ीम इंसान को सुरह फातेहा से ज़रूर याद करें.