17 अक्तूबर 2013

एजाज़ की वालेदा की रेहलत के 6 माह

एजाज़ (रिज़वी कॉलेज, मुंबई)  की वालेदा की रेहलत के 6 माह मुकम्मल होने पर 27 अक्तूबर को इलाहाबाद में मजलिसे तर्हीम।

14 अक्तूबर 2013

क्या हज एक पिकनिक हो गया है?

भांजा: मामूजन, सऊदी अरब के जीज़ान शहर के पेश इमाम ने हज को एक पिकनिक ( picnic ) से ताबीर किया है . उन्होंने यह क्यों कहा ?
मामूनजान : बेटा आजकल हज पिकनिक की तरह ही होता जा रहा है . विमान से 5 घंटे में मीकात पहुंचे , एहराम  बांधकर बस में बैठे, मक्का पहुंच गए .
आलीशान होटल में रहने , सुंदर और AC बसों में यात्रा , अच्छे  प्रकार के खाने , अराफात से मिनी air condition ट्रेन में मिना पहुंचे , चौड़े चौड़े तीन शैतान को कंकरी मारी ( पहले तीन स्तंभ थे जिन पर निशाना लगाना आसान नहीं था , लेकिन अब तकरीबन चालीस फिट चौड़ी दीवार है ) बेहतरीन  किस्म के खेमे जिसमें उच्च प्रकार के कालीन बिछे हुए और barbeque में लगे सीख कबाब और मुर्गी प्रदर्शन , ताज़ा और  शुद्ध पानी की व्यवस्था , विश्व प्रसिद्ध ' फास्ट फूड ' होटल , नरम तकिया ,आरामदेह बिस्तर , उठते बैठते सुविधाएं. यह सब picnic के लक्षण नहीं तो और क्या है?
असली  हज कहां गया ? लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक क्यों ? बलिदान का मतलब क्या है? सफा  और मारवाह को अल्लाह की निशानी क्यों कहा गया है ? प्रयास का मतलब क्या है ? तवाफ़ क्यों किया जाता है ? हजरे असवद क्या याद दिलाता है ? मकामे इब्राहीम क्यों है ? मुस्तजार  का इतिहास क्या है? हिज्र इस्माइल में कितने अम्बिया दफन हैं ? मिजाबे रहमत के  नीचे प्रार्थना मांगने की पुण्य क्या है?
इन सब बातों से हाजियों  की  बहुमत ना वाकिफ है  ...... ज़रा सी तकलीफ़ से हाजी को हालते इह्राम में गुस्सा आ जाता है .
हाजी यह भूल जाता है यह वही अल्लाह का घर है जिसका तवाफ़ अम्बिया ने किया, उनके औसिया ने बजा लाया , इस्लाम के बुज़ुर्ग ओलमा  ने उसका चक्कर लगाया.
हज में जितनी तकलीफ  हो उतना ही सवाब है. हज पर एक दिरहम  खर्च करना हजार दिरहम के बराबर है. अराफात में ठहेरने से वह पापों से मुक्त हो जाता है.
रसूल (स.) के नवासे इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने 25 / हज मदीना से मक्का पैदल किया था.
इसमें कोई शक नहीं कि बहुतों के लिए अब हज 'पिकनिक' हो चुका है, लोग सिर्फ 'हाजी' का लेबल ले कर वहाँ से वापस आते हैं.

12 अक्तूबर 2013

दुआ का कुबूल होना

पैग़म्बरे इस्लाम (स. अ.) ने फ़रमाया:
या अली! ख़ुदा वनदे आलम ऐसे आदमी की दुआ को जो ज़बान से तो निकले ,दिल उस से ग़ाफिल हो, कोबूल नहीं करता।