मरहूम मंज़ूर हसन रिज़वी इब्ने अख्तर हुसैन की कल 29 रबीउल अव्वल को बीसवीं बरसी है. मरहूम हमारे नाना थे. उनके 6 बेटे और 5 बेटियाँ थीं जिसमें 4 फरजंद और 3 दुखतर हयात हैं. सबसे बड़े फरजंद मरहूम महमूद सरोश 13 साल पहले इन्तेकाल कर गए, वोह एक जाने माने शाएर थे. उनसे छोटे याकूब हसन रिज़वी तकरीबन 24 साल पहले सड़क हादसे का शिकार हो गए थे.
डाक्टर अख्तर हसन रिज़वी उनके पांचवें फरजंद हैं जिनका शुमार मुल्क के मशहूर बिल्डर माने जाते हैं. साथ ही उनहूँ ने तालीमी मैदान में खिदमात अंजाम देकर अपना और अपने वालेदैन का नाम रोशन किया है. जौनपुर का कालिज, बम्बई में रिज़वी कॉलेज और करारी में एक बहुत ही बड़ा कॉलेज उनकी ही काविशों का नतीएजा है.
मरहूम मंज़ूर हसन रिज़वी ने अपनी ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा बम्बई में गुज़ारा और रिटायर होने के बाद करारी में रहने लगे. बागबानी का बहुत शौक़ था. पेड़ पौदों से दिलचस्पी थी. अमरुद और आम के बाग़ में बराबर हाजरी देते.
अपनी सेहत का ख्याल रखते, तकरीबन सौ साल जिए लेकिन कमर नहीं झुकी. तबियत ज़रा सी नासाज़ होती तो खाने पर रोक लगा देते. पेट खराब होने न देते और रोज़ नहार मुंह 'निम्कौरी' फांकते थे.
हर नमाज़ का खात्मा अपनी औलाद के लिए बा आवाज़ बुलंद देर तक दुआ करते, हर एक बेटा बेटी का नाम लेले कर दुआ करते.
शाएर अकबर इलाहाबादी के अशआर ज़बानी याद थे और हमेशा उन्हें पढ़ा करते थे. हाफेज़ा तेज़ था, सिर्फ बीनाई ज़रा कमज़ोर हो गई थी. कभी परेशान दिखाई नहीं दिए. हर हाल में मूतमइन नज़र आते.
अल्लाह ताआला उनके दरजात में बुलंदी अता करे. एक सूरा फातेहा से मरहूम को नवाज़ने की गुजारिश है.
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