वेलादत की खबर हैदर की पहुंची दो जहाँ तक है ,
गिरे काबे के बुत डर कर हदीसों में बयां तक है ,
है काबा मुन्तजिर बिन्ते असद के पाक कदमों का ,
अली के वास्ते जाये वेलादत का मकाँ तक है ,
बनेगा फ़ातेमा बिन्ते असद का ज़चाखाना यह ,
के इस्तेकबाल में दीवारे काबा शादमा तक है ,
अज़ल का नूर दुनिया में हुआ है आज जलवागर ,
सजी बज्मे वेलाये मुर्तजा राहे जेना तक है ,
करेंगे मीसमे तम्मार की मानिंद मिदहत हम ,
अली का सच्चा आशिक दहर में पीरो जवाँ तक है ,
मुनाफ़िक़ जानवर से भी गया गुज़रा न हो क्यों कर ,
अकीदत दहर में रखता अली से बे-ज़ुबां तक है ,
बरहना देख कर दुश्मन की जाँ भी बख्श दी हंसकर ,
अली बुजदिल अदू के इस अमल पर मेहरबाँ तक है ,
अली के नाम पर सर धुनते हैं अर्शी फरिश्ते तक ,
हुकूमत Murtaza की यह ज़मीन क्या आसमाँ तक है ,
सुनाऊंगा कसीदे मर के मरकद में फरिश्तों को ,
अली की मद हा का शैदा गिरोहे -कुद्सियाँ तक है ,
अकीदे की न पूछो इन्तेहा बीमार सादिक से ,
अली के नाम से उल्फत तो क़ल्बे नातवां तक है .
2 टिप्पणियां:
Bahut achche sadik bhai ... aap bhi khoob kehte hain. aap Rizvi college bandra mein hain ya wahan jana chod diya?
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