हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की विलादत के मौके पर ज़हीर इलाहाबादी (शैज़ी रिज़वी ) ने
नजफे अशरफ, इराक से अपना कलाम www.MyKarari.com के लिए भेजा है.
हम तहे दिल से उनका शुक्रिया अदा करते हैं.
ज़हीर इलाहाबादी नजफे अशरफ में हौज़े इल्मिया में दीनी तालीम हासिल कर रहे हैं.
मदहा की कुव्वत अता कर दे खुदा शब्बीर की
ज़िन्दगी बे मानिओ मतलब गुज़र जाती मेरी
शुक्रिया तेरा के तू ने दी अजा शब्बीर की
मालिके खुल्दे बरीं हो जाता है लम्हों में वो
गर किसी बन्दे पे हो जाए अता शब्बीर की
नोके नेजा पे तिलावत कर रहे हैं शाहे दीं
और जियारत कर रहा है हल अता शब्बीर की
मिस्ले राहिब बे समर उम्मीद को बख्शे समर
राएगाँ जाती नहीं कोई दुआ शब्बीर की
क्या कोई बच पाया है कहरे खुदा से आज तक
कहरे खालिक की तरह से है विगा शब्बीर की
जिस घडी तलवार के कब्जे में था दस्ते हुसैन
देखता था खालिके अकबर अदा शब्बीर की
अश्क आखों में छलक पड़ते थे पैग़म्बर के भी
आँख में आंसू अगर एक आ गया शब्बीर की .
नामए आमाल मेरा देखने से पहले तुम
जा के पूछो तो जरा मर्ज़ी है क्या शब्बीर की
पूछ बैठा ख्वाब में जिब्रील से मैं क्या करूं
कह उठे लिख दो ज़हीर अब कुछ सना शब्बीर की
1 टिप्पणी:
bahut khoob
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