सय्यद अली काज़ी तबातबाई (र.अ.) ने वसीय्यत में लिखा है की "मोमिन को मस्जिद में नमाज़ अदा करनी चाहिए, मिसाल देते हुए फरमाते हैं, की मोमिन की हैसियत मस्जिद में उसी तरह होना चाहिए जैसे मच्छली का पानी में रहना. "
आप फरमाते हैं की नमाज़ को बाज़ारी न बनाओ उसे अव्वले वक़्त अदा करो। अगर तुम ने नमाज़ की हिफाज़त की तो तमाम चीज़ें महफूज़ हो जाएँगी। नमाज़ के बाद तस्बीहे हज़रत ज़हरा (अ.स.) पढ़ना न भूलना क्यूंकि इस शुमार "ज़िक्रे कबीर " में होता है। उसके बाद आयतल कुर्सी को तर्क न करना।
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