30 नवंबर 2010

जश्ने ग़दीर का स्टेज

जैनाबिया बॉम्बे में जश्ने ग़दीर का स्टेज. यह जश्न सनीचर 27 नवम्बर को हुआ था. अंग्रेज़ी में रिपोर्ट के लिए click करें.

29 नवंबर 2010

अली मियाँ का अंगूठा ज़ख्मी

मरहूम शरीफुल हसनैन के छोटे फरजंद, वजीहुल हसनैन जिनको लोग अली मियाँ के नाम से जानते हैं 25 नवम्बर को लोकल ट्रेन में लड़ाई कर रहे दो अजनबी आदमियों को छोडाते हुए उन  में से एक ने  ने उनके सीधे हाथ का अंगूठा चबा लिया. अली मियाँ को फ़ौरन अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्हें 1600 रूपये ईलाज में खर्च करना पड़े. मीरा रोड से रिजवी कॉलेज ड्यूटी    जा रहे थे. अब उन्हों ने कान पकड़ लिया है की दो लड़ते अजनबियों के बीच कभी ना बोलेंगे. इस साल करारी में  मुहर्रम की पहली तीन मजलिसें उनके हिस्से की हैं. My Karari उनके ग़म में बराबर का शरीक है.

मजलिसे बरसी

आज नमाज़े जोहर से पहले शिया जामा मस्जिद, बान्द्रा बाज़ार, मुंबई में इग्यौना के हसन साहब (भारत नगर ) की वालेदा मरहूमा अमीर बानो बिन्ते मोहम्मद असग़र की बरसी की मजलिस हुई जिसे मौलाना शाहिद रेज़ा साहब ने खिताब फ़रमाया. मौलाना शाहिद साहब ने विलायते अली (अ.स.) जन्नत और जहन्नम का तज्केरा किया. आप ने कुरआन की तिलावत पर भी जोर दिया और कहा की जन्नत में दरजात एक एक आयात पर बुलंद होंगे. मौलाना शाहिद रेज़ा मरहूम अकबर रेज़ा के पोते हैं और बहुत अच्छी जाकिरी करते हैं. मजलिस के शुरू में मजमा बहुत कम था लेकिन आहिस्ता आहिस्ता लोग आते गए. कल रात जैनाबिया में ग़दीर की महफ़िल होने की वजह से बहुत से लोग मजलिस में शरीक न हो सके.
आप लोगों से गुजारिश है की मरहूमा को एक सुरह फातेहा पढ़ कर बख्श दें.

मौलाना शाहिद रेज़ा मजलिस पढ़ते हुए 

26 नवंबर 2010

बॉम्बे में जश्ने ग़दीर

ग़ुस्सा करने से बचो

ग़ुस्सा करने से बचो. इमाम सादिक  (अ.स.) फरमाते हैं की जो कोई अपने ग़ुस्से को काबू में रखता है अल्लाह तआला उसके ओयूब (बुराइयां) को छुपाये रखता है.

25 नवंबर 2010

ग़दीर पर दबीर सीतापूरी का कसीदा

दबीर सीतापुरी का शुमार हिन्दुस्तान के मशहूर शाएरों में  होता है. मरहूम अपना कलाम तरन्नुम में पढ़ा करते थे और खूब पढ़ते थे. जब वोह कोई कसीदा पढ़ते थे तो  सुनने वाला भी झूम उठता था. इमामे ज़माना (अ.स.) के सिलसिले में उनकी नज़्म  "अधूरा इंतज़ार " ने खूब शोहरत पाई थी. आज ईदे ग़दीर के मौके पर उनकी आवाज़ में ही उनका कलाम जो उन्हों ने ग़दीर के 1400 साल मोकम्मल होने पर केसर बाग़ में पढ़ी थी, पेश कर रहे हैं. विडियो ना मिलने पर उनकी आवाज़ को तसावीर में ज़म किया है. अल्लाह मरहूम की आवाज़ पर रहमत नाजिल करे. इमकानात पूरे हैं की इस वक़्त वोह अपना कसीदा आलमे बरज़ख में मोमिनीन अर्वाह को सुना कर उन्हें मेह्जूज़ कर रहे हों. इस आलमे दुनिया में आप भी सुनें और मसरूर हों.

18 नवंबर 2010

वल्लन भाई जिंदाबाद

गुज़िश्ता दो हफ्ता से पूरे उत्तर प्रदेश में चुनाव का वाइरल बुखार फैला हुआ था. यह चुनाव परधानी का था. भला करारी के अतराफ के लोग बचे  क्यूँ रहते. करारी से तीन किलो मीटर पर एक गाँव है जो  मलकिया कहलाता है. यहाँ से वल्लन भाई भी प्रधान के पद के लिए खड़े हुए थे. बहुत मज़बूत प्रतिद्वंदी थे. चारों तरफ वल्लन भाई जिंदाबाद की गूँज थी. सभी के मुंह से यही कलाम था की जीतेंगे तो वल्लन भाई. बच्चे नारा लगा रहे थे "हमारा प्रधान कैसा हो, वल्लन भाई जैसा हो", लेकिन वोट बटने के डर से  इनके मुखालिफ ने इन्हें बैठा दिया और उसके बदले दस हज़ार सलवात का सवाब उन्हें हदया किया. वल्लन भाई  ने सवाब कमाकर अपनी आखेरत तो बना ली मगर सवाब हदया करने वाला चुनाव हार गया. उसकी दुनिया भी चली गई. किसीकी आखेरत की गारंटी कौन ले सकता है.
वल्लन भाई एक नेक काम बहुत कसरत से करते हैं और वोह पुन्य  काम है रिश्ता जोड़ने का. यह काम "फी सबीलिल्लाह" करते हैं. जितने भी घर बसाये आजतक किसी की  शिकायत नहीं आई. छुटपुट घटनाएँ तो हर घर में होती हैं. सब सुखी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. लिजीये आप खुद सुन लें की वोह क्या कह रहे हैं. बोलने की रफ़्तार कुछ तेज़ है ज़रा ग़ौर से सुनिए:

17 नवंबर 2010

करारी के सफ़र से वापसी

करारी में अगर बिजली अच्छी आ रही हो और मौसम भी खुशगवार हो तो वहाँ से कहीं बाहर जाने का जी नहीं चाहता. इतवार 14 नवम्बर का महानगरी से टिकट होने के बा वजूद बॉम्बे आने का जी नहीं चाह रहा था. सुबह इलाहाबाद के लिए पहली बस 7 बजे की थी. बस में मुसाफिर कम थे. उमूमन दो घंटे में इलाहाबाद पहुंचाने वाली यह मिनी बस सिर्फ डेढ़ घंटे में पहुँच गई. किराया सिर्फ पचीस रूपया. लेकिन बस से उतरकर साइकिल रिक्शा वाले ने करेली कालोनी का बीस रूपया किराया  लिया. मौलाना अली आबिद साहब के दामाद, जनाब मज्जन साहब के घर सामान रखा और A ब्लाक की जानिब रवाना हुए. जियारत खालू की अयादत करनी थी. उनके जोड़ों में दर्द और बुखार ने उन्हें कमज़ोर कर दिया था.
Janab Shafi Haider Rizvi
अस्सन भाई का घर करीब था . मज्जन के साथ उनसे भी मुलाक़ात की. अग्यौना के  शफी दादा भी बहुत दिनों से अलील थे . कमजोरी इतनी की चलना फिरना बंद हो गया. सिर्फ उठ कर बैठ सकते हैं. लेकिन इस बीमारी के बावोजूद  उनकी ज़राफ़त में कमी नहीं आई . कहने लगे की : "करारी जाने का बहुत जी चाहता है." शफी हैदर दादा की उम्र 80 के करीब है. उनके बड़े भाई वसी हैदर का कम उम्र में इन्तेकाल हो गया था. मरहूम का रिश्ता मुज़फ्फर नगर में हुआ था. मरहूम हमारे खुसरे मोहतरम अल हाज सय्यद मोहम्मद अली आसिफ जैदी के हकीकी बहनोई थे.
अब बारी थी हामिद चाचा से मुलाक़ात की. उनकी भी तबियत ना साज़ रहती है. रानी मंडी में उनके दौलत खाने पहुँचने पर यह दुआ कर रहे थे की वोह घर पर मिल जाएँ. दुआ कुबूल हुई. वोह घर पर मौजूद  थे और मज्जन वकील साहब के नौहों का मजमुआ "सहाबे ग़म " जो उर्दू ज़बान में छप चुका  है और हिंदी ज़बान में छपने जा रहा  है , की प्रूफ रीडिंग कर रहे थे.
हमें देखते ही सब लपेट कर रख दिया और हम लोग देर तक गुफ्तगू करते रहे . कुछ पुरानी यादें, कुछ अलालत का ज़िक्र, कुछ करारी के बारे में और फिर शेरोशएरी का तज्केरा. हामिद चचा ने ग़ज़ल, मंक़बत और मरसियों के बंद अपने खुसूसी अंदाज़ में सुनाए. नीचे मेराज फैजाबादी के चंद शेर आप ने पेश किये.
महानगरी 2.40 PM पर बनारस से इलाहाबाद आती है और 3.10 PM पर बॉम्बे के लिए रवाना होती है. वक़्त कम था. मज्जन ने लज़ीज़ मुर्ग की बिरयानी बनवाई थी. खाना खाने के बाद मज्जन ने इलाहाबाद स्टेशन पहुँचाया.

13 नवंबर 2010

मजलिसे तर्हीम

कल इतवार 14 नवम्बर को नमाज़े जोहर  से पहले शिया जामा  मस्जिद में मर्हूमा ततहीर फातेमा बिन्ते रमजान हुसैन की ईसाले सवाब की मजलिस है. खिताबत इमामे जुमा व जमात मौलाना अली ज़फर काजमी साहब करेंगे. मर्हूमा का इन्तेकाल और तद्फीन पिछले जुमा को हुई थी.  मोमिनीन से शिरकत की दरख्वास्त की गई है. जो इस मजलिस मैं शरीक नहीं हो सकते उनसे सुअराए फातेहा की गुजारिश है.

करारी में बारात और वलीमा का मौसम

करारी में शादी बियाह का सिलसिला जारी है. बुधवार 10 नवम्बर को मंझनपुर में नन्हें भाई के लड़के की शादी का वलीमा, और जुमेरात को इलाहबाद शहर, करेली कालोनी के दुल्हन पैलस  हाल में बाबू बख्शी साहब के फरजंद के निकाह के सिलसिले में वलीमा था. बारात लखनऊ गई थी.
शबे जुमा कानपुर में भी करारी के दामाद और अमरोहा के चश्मों चराग़  जनाब इकबाल नकवी साहब के सब से बड़े नूरे नज़र जो मोनू के नाम से पुकारे जाते हैं की शादी की मुनासिबत से वलीमा था. बरात  ८ दिसम्बर को देहली के करीब, साहिबाबाद गई थी. मोनू मरहूम मोहम्मद रज़ा (मैकन) के नवासे हैं. वलीमा में मोख्तालिफ अक्साम की चटोरी डिशों का एहतेमाम किया गया था. जिसे लोगों ने पसंद किया. शेहरी रवाज के मुताबिक चाट, पानी पूरी, चोव्मिन, मसाला डोसा, पनीर पकोड़े वगैरा खाने से पहले दिया गया. काफी भी लोगों ने काफी मेकदार में पी. इकबाल भाई सफारी में स्मार्ट दिखाई दे रहे थे. उन्नाव से सक़लैन और सय्यादैन साहब भी तशरीफ़ लाए थे. वलीमा की इस तकरीब में हुसैन भाई भी पेश पेश थे, बावजूद ये की उनका बायाँ  पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहा था. हाल ही में बॉम्बे के दौरे पर उनका पैर फिसल गया था और उनके में पैर फ्राक्चर हो गया था.
तकरीबन एक हफ्ते से नान गोश्त का दौर चल रहा है . खाते खाते तबियत के उकताने का डर था. अगर दरमियान में menu नहीं बदलता  तो पापी पेट के खराब होने का ख़तरा  था .इस  अज़ीम  खतरे  को टालने  के लिए  पंजतन  चाचा  के लखते  जिगर, शबीहुल ने  कल  जुमा  के रोज़  सुबह  नाश्ते  पर हम  लोगों को मदु  किया  और चने  की रोटी,  नमक  मिर्च  के साथ  बैगन  का भुरता  पेश किया. नाश्ता  करने पर तबियात  मिर्च  की वजह  से सुस्स्वा  तो गई लेकिन  लुत्फ़  बहुत  आया . जईके   में इजाफा  हुआ  क्यूंकि  शहेंशाह  चचा  और नब्बन चाचा  भी दस्तरखान  पर  मौजूद  थे.
अभी  यह  नाश्ता  हजम  नहीं हुआ  की शोएब  ने दोपहर  के खाने में बड़े का पाया  पकवाने  का एलान  कर  दिया. अगर मौसम  में ठंडक  होती  तो यह  डिश  भी  यादगार  हो जाती.

10 नवंबर 2010

करारी की जामे मस्जिद में आज दुआ

शमीम (ज़हीरुल अब्बास ) अभी तक बॉम्बे के कस्तूरबा हॉस्पिटल में पीलिया हो जाने की वजह से जेरे इलाज हैं. कल मंगल को खून की रिपोर्ट से मालूम हुआ की पीलिया 25 पॉइंट तक नीचे उतरा है जबकी उसे ज्यादा से ज्यादा 10 point होना चाहिए. करारी  की जामे मस्जिद में आज ज़ोहरैन की नमाज़ के बाद मोमिनीन ने उनकी सेहत के लिए दस "मर्तबा अम्मान योजीब..." पढ़ा. आप लोगों से भी गुजारिश है की उनके जल्द सेहत याब होजाने की दुआ करें.

पंजतन रिजवी की दोख्तर का निकाह

दूल्हे राजा
पंजतन रिजवी की दोख्तर का निकाह मंझनपुर के नन्हे साहब के फरजंद से के हमराह ८ नवम्बर को मंजू मास्टर इमामबाड़े में हुआ. लड़के की तरफ से मौलाना नसीमुल हसन साहब ने सीगा  जारी किया और लड़की के वकील मौलाना रज़ा हैदर साहब थे. बरात अपने वक़्त पर करारी पहुँच गई थी. जनाब पंजतन रिज़वी के सब से बड़े दामाद शुएब सलमान ने  बारातियों का इस्तेकबाल किया. शादी की इस तकरीब में मौलाना सय्यिद हसनैन करार्वी, मौलाना मोहम्मद अख्तर साहेबान भी मौजूद थे. मालेगांव के मौलाना अमीर हमजा भी इस ख़ुशी के मौके पर शरीक थे. जनाब मुख़्तार रिजवी ने इस प्रोग्राम में अपनी शीरी बयानी से लोगों को मेह्जूज़ किया.

मंगल 9 नवम्बर को मंझन पुर में इसी शादी से मुताल्लिक वलीमा रखा गया, जिसमें करारी से खुसूसी तौर पर बॉम्बे के मेहमान शिरकत करने गए थे. खाना बहुत लज़ीज़ था, मखसूसन तंदूरी रोटी. बेरोई के लल्लन भाई, शाहेम्शः हुसैन, इरफ़ान और दीगर हजरात ने वलीमे का लुत्फ़ उठाया और रात ही में करारी वापस आ गए.

07 नवंबर 2010

करारी में ग़मी और खुशी की ताक्रीबात जारी

दो तीन दिनों से करारी में ग़मी और खुशी की ताक्रीबात जारी हैं और सिलसिला एक हफ्ते तक जारी रहेगा. सनीचर को दोपहर ११ बजे शिया जमे मस्जिद में  मर्हूमा ततहीर फातेमा बीनते रमजान हुसैन के सेव्वोम की मजलिस हुई जिसे मौलाना अबुल कासिम साहब ने खिताब किया. मरहूमा की तद्फीन जुमा के रोज़ असर के वक़्त हुई थी.
अबुल कासिम साहब सेव्वोम की मजलिस पढ़ते हुए 
 शाम को नमाज़े मग्रेबैन के बाद शिया जामे मस्जिद में एक और मजलिस हुई जिसे मौलाना एहसन अब्बास साहब ने पढी . यह मजलिस मरहूम आक़ा हसन के ईसाले सवाब के लिए थी .
आज भी करारी की शिया जामे मस्जिद में मरहूम आका हसन इब्ने नाज़िर हुसैन के चेहलुम की मजलिस थी. जिसे बॉम्बे से आये मौलाना सय्यद हसनैन करार्वी ने खिताब फ़रमाया . हसनैन साहब ने नवें इमाम , इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की शहादत की मुनासेबत से उनकी ज़िन्दगी के हालात बयान किये. मजलिस के बाद नमाज़ बा जमा अत और फिर डिप्टी साहब के इमामबाड़े में नजर का एहतेमाम था.
मौलाना हसनैन साहब चेहलुम की मजलिस पढ़ते हुए.