18 नवंबर 2010

वल्लन भाई जिंदाबाद

गुज़िश्ता दो हफ्ता से पूरे उत्तर प्रदेश में चुनाव का वाइरल बुखार फैला हुआ था. यह चुनाव परधानी का था. भला करारी के अतराफ के लोग बचे  क्यूँ रहते. करारी से तीन किलो मीटर पर एक गाँव है जो  मलकिया कहलाता है. यहाँ से वल्लन भाई भी प्रधान के पद के लिए खड़े हुए थे. बहुत मज़बूत प्रतिद्वंदी थे. चारों तरफ वल्लन भाई जिंदाबाद की गूँज थी. सभी के मुंह से यही कलाम था की जीतेंगे तो वल्लन भाई. बच्चे नारा लगा रहे थे "हमारा प्रधान कैसा हो, वल्लन भाई जैसा हो", लेकिन वोट बटने के डर से  इनके मुखालिफ ने इन्हें बैठा दिया और उसके बदले दस हज़ार सलवात का सवाब उन्हें हदया किया. वल्लन भाई  ने सवाब कमाकर अपनी आखेरत तो बना ली मगर सवाब हदया करने वाला चुनाव हार गया. उसकी दुनिया भी चली गई. किसीकी आखेरत की गारंटी कौन ले सकता है.
वल्लन भाई एक नेक काम बहुत कसरत से करते हैं और वोह पुन्य  काम है रिश्ता जोड़ने का. यह काम "फी सबीलिल्लाह" करते हैं. जितने भी घर बसाये आजतक किसी की  शिकायत नहीं आई. छुटपुट घटनाएँ तो हर घर में होती हैं. सब सुखी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. लिजीये आप खुद सुन लें की वोह क्या कह रहे हैं. बोलने की रफ़्तार कुछ तेज़ है ज़रा ग़ौर से सुनिए:

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