17 मई 2011

वतन वापसी

नजफ़ में रौज़ाए हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ.स.)
  शाम, ईराक और ईरान की ज़ियारात अपने इख्तिताम पर आई. 28 दिनों का यह टूर निहाएत ही कामयाब रहा. तीनो ममालिक में मौसम बहुत ही शानदार था. अप्रैल के दुसरे हफ्ते से मई के दुसरे हफ्ते में मौसम बहुत ही प्यारा रहता है, वरना मई के तीसरे हफ्ते से गर्मी शुरू हो जाती है. मौसम से परेशानी का एहसास खुसूसन ईराक में होता है. वहाँ बिजली हर दो घंटे के बाद चार घंटे गाएब रहती है, इस तरह 24 घंटों में सिर्फ 8  घंटा बिजली की सप्लाई रहती है. अक्सर होटल बिजली आने पर ही AC चलाते हैं, वरना जेनेरटर के ज़रिए सिर्फ पंखा चल सकता है. 
यह मसअला पूरे ईराक में है. हम लोगों ने जब सरज़मीने नजफ़ पर क़दम रखा तो मग़रिब की अज़ान होने वाली थी और उस वक़्त बिजली नहीं थी.  पूरा शहर जेनेरटर की आवाज़ से गूँज रहा था. चार बरसों में नजफ़ काफी तब्दील हो चुका था. सिकुरिटी बहुत सख्त थी. हालात को देखते हुए ज़रूरी भी था. शारे रसूल पर होटल शिक़ाकुल ईमान में तीन रोज़ कियाम करना था. यह होटल उसी सड़क पर वाके है जहां अयातुल्लाह सीस्तानी साहब का दफ्तर है. 
शाम से तकरीबन 30 घंटे के बस के सफ़र के बाद हिम्मत नहीं हुई की उसी शब् अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) के रौज़े पर हाजरी देते. रात के 11 बज रहे थे और रौज़ा 12 बजे बंद हो जाता है.