31 जनवरी 2012
30 जनवरी 2012
29 जनवरी 2012
जाफरपुर महावां में ज़नानी शब् बेदारी
कल रात जाफरपुर महावां में ज़नानी शब् बेदारी हुई. यह प्रोग्राम हवेली में रात 9 बजे शुरू हुआ और सुबह 5 बजे तक जारी रहा. गाँव की खवातीन ने शिरकत की.
रात भर 4 मजलिसें हुईं और हर मजलिस के बाद 5 नौहे हुए.
यह सालाना प्रोग्राम दुसरे गाँव से भी खवातीन पहुँचती हैं. करारी से भी एक टेम्पो गया था.
जाफरपुर महावन में अय्यामे अजा में बहुत सी मजलिस और जुलूस होते हैं. जिसमें बगैर तफरीके मज्हबो मिल्लत गाँव वाले शिरकत करते हैं.
मरहूम ज़फर अब्बास आबिदी का चेहलुम
मरहूम सय्यद ज़फर अब्बास आबिदी |
आज इलाहाबाद में अनवारुल ओलूम के सामने वाले मैदान में मरहूम ज़फर अब्बास साहब के चेहलुम के मौके पर सुबह दस बजे मजलिसे तरहीम का इनेकाद किया गया है.
इलाहबाद का कोई ऐसा मर्द, औरत या बच्चा नहीं है जो मरहूम ज़फर अब्बास को न जानता रहा हो.
एक मुखलिस मुबललिग़. एक जाज़िब खतीब. नेक, भरोसेमंद, बा अमल जाकिर. मुख्तार नामाह पढने का फनकार, मिम्बर की जीनत. और सब से बड़ी सिफत; एक निहायत ही लोगों के काम आने वाला सादा इंसान. जब तक सेहत साथ दे रही थी, करारी से जुड़े हुए थे.
हज का बेहतरीन रहबर. एक अरसा मुस्लिम टूर्स के साथ होकर शिया हाजिओं को सहीह हज करवाते रहे. बाद में जब कंपनी कमज़ोर हो गई तो शिया प्राइवेट टूर में रहबरी की.
हिंदुस्तान और पाकिस्तान के हाजी ज़फर अब्बास के नाम से मानूस थे. हज के काफिले में खुसूसन खवातीन के पूरी तरह मुआविन रहते. मक्का में होटल के कमरे के दरवाज़ों पर नाम बनाम हाज्जा को पुकारते और हरम जाने के लिए आमादा करते.
जब भी मरहूम से मक्का या मदीना में हज के मौके पर हमसे मुलाक़ात होती तो हमारे वालिद को याद करते और लोगों से यह कहते की "रज़ी मियां के वालिद (मरहूम गुलाम हसनैन करारवी) ने ही मुझे मुस्लिम टूर्स के साथ जाने पर जोर दिया ता की मोमिनीन हज के सही अरकान अदा कर सकें."
बहुत मोहब्बती, खादिमे कौम और मुन्कसिर मिज़ाज (आज के दौर में खादिमे कौम का मुन्कसिर मिज़ाज होना नायाब है, वोह खादिम कम और मखदूम जियादा होते हैं).
मरहूम हमेशा शेरवानी में मलबूस होते. मुझे तो याद ही नहीं पड़ता के मैंने कभी उन्हें बगैर शेरवानी के देखा हो.
परवर दिगार मरहूम के दरजात में बुलंदी अता करे. मुमकिन है की जौनपुर की यह शख्सियत मैदाने महशर में इलाहबाद के मोमिनीन की शफाअत की सिफारिश करे.
आप से गुज़ारिश है की इस अज़ीम इंसान को सुरह फातेहा से ज़रूर याद करें.
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28 जनवरी 2012
शैदाए रेज़ा के मकान पर खम्सा मजालिस
जैगमुर रिज़वी मजलिस पढ़ते हुए |
आज रात 8 बजे शैदाए रेज़ा साहब के मकान पर चौथी मजलिस थी. यह खम्सा मजालिस पहली रबीउल से शुरू हुईं. कल आखरी मजलिस है.
यह खम्सा गुज़िश्ता कई साल से हो रहा है. मोमिनीन अच्छी तादाद में शिरकत करते हैं. बकौल नय्यर भाई के, आज, कल के मुकाबले मौसम कम ठंडा था.
मौलाना सय्यद साजिद महदी उर्फ़ जैगमुर रिज़वी ने ज़ुल्म की किस्में बताईं. इमामत का दर्जा और मंसबे इमामत की अहमियत का तज्केरा किया.
जनाबे सकीना के मसाएब पर मजलिस को ख़त्म किया.
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काजी जी की मस्जिद में चेहलुम की मजलिस
क़ाज़ी जी की मस्जिद, बख्शी बाज़ार, इलाहबाद |
मजलिस से पहले सोज़ खानी और पेश्खानी हुई. शाएरों ने अपना मंजूम नजराना पेश किया.
मरहूम के फर्ज़न्दान राजू, अनवार और राशिद के लिए ये बहुत दुःख भरा दिन था . राशिद अबू धाबी से चेहलुम के लिए आए थे. अल्लाह इनको सबरे जमील अता करे .
मरहूम के छोटे भाई जनाब मुख़्तार साहब पर अपने भाई के बिछड़ जाने से बहुत ज्यादा असर रहा , उन्होंने इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
परवरदिगार मरहूम को जवारे मासूमीन में जगह दे.
25 जनवरी 2012
इरफ़ान इलाहाबादी का कलाम
Irfaan Allahabadi, a young poet |
वारिसे अह्मदे मुख्तार तक आते आते
हक तलफ हो गया हक़दार तक आते आते
खुम में अहमद से तो कहते रहे बखखिन बखखिन
फिर गए हैदरे कररार तक आते आते
दम निकल जाता है ईमान का बे हुब्बे अली
खानाए काबा की दीवार तक आते आते
रोकने निकली थी हैदर के फ़ज़ाइल दुनिया
थक गई मीसमे तम्मार तक आते आते
लोग समझे थे सिमट जाएगा ज़िक्रे हैदर
हक मगर फैल गया दार तक आते आते
या अली कहते ही इरफ़ान सहेम जाती हैं
मुश्किलें मुझ से गुनाहगार तक आते आते
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20 जनवरी 2012
अम्बाही के बस्सन की तद्फीन दोपहर 3 बजे
अम्बाही के बशीर हुसैन उर्फ़ बस्सन का कल हार्ट अटैक से इन्तेकाल हो गया था. हसनैन मार्केट में कारोबार कर रहे वस्सन भाई के बड़े भाई थे. मरहूम की तद्फीन आज दोपहर 3 बजे होगी.
आप से गुज़ारिश है की एक सुरह फातेहा उनके सवाब के लिए बख्श दें और साथ ही आज मगरिब की नमाज़ के बाद नमाज़े वहशत पढ़ें. बशीर हुसैन इब्ने नजीर हुसैन.
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करबला में अरबईन पर दुआ-इ- कुमैल
17 जनवरी 2012
16 जनवरी 2012
14 जनवरी 2012
मरहूम सय्यद गुलाम पंजतन इब्ने काजिम हुसैन का चेहलुम
परसों यानी पीर 16 जनवरी को करारी शरीफाबाद में मरहूम सय्यद गुलाम पंजतन के चेहलुम की मजलिस होगी जिसमें मौलाना सय्यद हसनैन रिज़वी करारवी खिताबत फ़रमाएंगे.
यह मजलिस सुबह 10 बजे कुरआन खानी के बाद शुरू होगी.
आप से शिरकत की दरखास्त है. अगर आप किसी वजह से शरीक न हो सकें तो कम अज कम एक सुरह फातेहा से मरहूम को याद करें.
तफसील के लिए मरहूम के फरजंद शबीहुल काजिम से राबेता 9860451686 किया जा सकता है.
13 जनवरी 2012
11 जनवरी 2012
हवाई जहाज़ में अज़ादारी
ज़माना तुम्हें अच्छा समझे
10 जनवरी 2012
दोस्ती करना और निभाना
09 जनवरी 2012
इमामबाडा चौधरी कादिर अली से 18 ताबूत बरामद होंगे
26 जनवरी को करारी के इमामबाडा चौधरी कादिर अली से 18 ताबूत बरामद होंगे.
18 ताबूत बरामद होने का यह दूसरा साल है.
वक़्त है 9 बजे सुबह.
यह ताबूत मुस्लिम यूथ कमिटी की जानिब से निकला जाता है.
आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ ज़रूर शरीक हों और जनाबे फातेमा ज़हरा (स.अ.) को उनके लाल का पुरसा दें.
मजीद मालूमात के लिए 9839515958 राबेता किया जा सकता है.
07 जनवरी 2012
06 जनवरी 2012
04 जनवरी 2012
मलाड मुंबई में मरहूम हामिद रिज़वी के ईसाले सवाब की मजलिस
कल रात मलाड मालोनी में मरहूम हामिद रिज़वी इब्ने मोहम्मद तकी के ईसाले सवाब के लिए महफिले मुहिब्बाने हुसैन में एक मजलिस का इनेकाद किया गया.
मौलाना रहमान अली रूहानी ने जाकरी फरमाई.
मजलिस के बाद मरहूम की याद में दो नौहे पढ़े गए जिसे मरहूम बड़ी ख़ूबसूरती से पढ़ा करते थे और जिस पर ज़ोरदार मातम हुआ करता था. वोह थे "लाचार हुसैना" और "ख़ाक पे बीबी न सो, बाली सकीना उठो".
इस मजलिसो मातम का एहतिमाम अंजुमने मुहाफ़िज़े इस्लाम, इलाहबाद ने किया था.
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करारी करबला में परचमे अब्बास
01 जनवरी 2012
आ नए साल बता कैसे मुबारक मैं कहूँ ??
आ नए साल बता कैसे मुबारक मैं कहूँ ??
लाश शब्बीर की मकतल में पड़ी है अब भी
मेरी आँखों में अभी शाम के कैदी हैं बसे
सहन में मेरे अभी शामे गरीबाँ की सियाही है बिछी
मेरा मलबूस तो देख अब भी सोगवार हूँ मैं ,
देख मातम में है सारा यह कबीला मेरा ..
आ नए साल बता तू ही बता दे मुझको ,
क्या कहूँ? कैसे मैं खुश रंग क़बा को ओढ़ूँ ?
ख़ाक ओढ़े अभी कोनें की शहजादी है ..
सरे मजलूम सिना पर है तिलावत करता ,
कोई बीमार जो माँ बहनों की चादर पे लहू रोता है ,
कैसे उसको मैं बताऊँ के तू फिर आया है ..
जो के ज़िन्दान में लम्हों को गिना करती है ??
वो यातीमान के जो ढलती हुई शामों में परिंदों का पता पूछती है ?
आ नए साल बता रंग भरूँ कोनसा मैं ?
वोह जो सुर्खी सरे अफ्लाक है खूने दिल की ?
या सियाही जो सरे शामे गरीबां फैली ?
या सफैदी जो किसी बीमार के बालों में उतर आई है ?
आ नए साल की रानाई चली जा के यहाँ
मातमी लोग हैं और ,
बिखरे है मिटटी पे गुलाब ..
बैन करती हुई पियासों पे ग़मज़दा आँखें ..
अपने पियारों को बनाए है सदका शेह का ,
माओं बहनों की सिसकती हुई ज़ख़्मी आँखें ..
तुझ से हो पाए तो बस काम यह इतना कर दे ..
खून का रंग फ़क़त अपनी क़बा से धो दे!!!
हामिद चचा का एक यादगार विडियो
इस विडियो में:
करारी में मुहर्रम 2009 में हामिद चचा बॉम्बे वालों को मरसिया पढने का फन समझाते हुए और एक गैर मुस्लिम खातून मरसिया निगार का कलाम सुनाते हुए. चूँकि यह विडियो मोबाइल से बनाया गया है इस लिए quality खराब है.
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मरहूम सय्यद मोहम्मद हामिद की मजालिसे तरहीम
मरहूम सय्यद मोहम्मद हामिद के ईसाले सवाब के लिए 26 , 27 और 28 जनवरी को मजालिसे तरहीम का सिलसिला इलाहबाद की काजी जी की मस्जिद में रखा गया है.
26 जनवरी को काजी जी की मस्जिद में मौलाना कसरे सुलतान साहब खिताब फ़रमाएंगे,
27 जनवरी को मौलाना रज़ी हैदर साहब मजलिस पढ़े गे और
28 जनवरी को मौलाना एहसान हैदर जवादी साहब जाकिरी फ़रमाएंगे.
आप लोगों से ज्यादा से ज्यादा तादाद में शिरकत की गुज़ारिश है.
तफसील के लिए जनाब मोख्तार साहब से 081276553123 पर राबता किया जा सकता है.
26 जनवरी को काजी जी की मस्जिद में मौलाना कसरे सुलतान साहब खिताब फ़रमाएंगे,
27 जनवरी को मौलाना रज़ी हैदर साहब मजलिस पढ़े गे और
28 जनवरी को मौलाना एहसान हैदर जवादी साहब जाकिरी फ़रमाएंगे.
आप लोगों से ज्यादा से ज्यादा तादाद में शिरकत की गुज़ारिश है.
तफसील के लिए जनाब मोख्तार साहब से 081276553123 पर राबता किया जा सकता है.
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