16 जून 2010

मज़बूत ईमान


हज़रत रसूले अकरम (सल्लल लाहो अलैहे आलेही वसल्लम ) ने फ़रमाया :
ईमान उस वक़्त तक मुस्तेह्कम (मज़बूत) नहीं हो सकता जब तक दिल मज़बूत हो और दिल उस वक़्त तक मज़बूत नहीं हो सकता जब तक ज़बान मुस्तेह्कम हो.

इस हदीस से यह मालूम होता है की मज़बूत और मुस्तेह्कम ईमान के लिए ज़रूरी है की एक मोमिन की ज़बान उसके काबू में हो। उसकी ज़बान से दुसरे मोमिनीन महफूज़ रहें । अगर ज़बान खराब तो ईमान खराब । अगर ईमान खराब तो आखेरत खराब और बर्बाद ।

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