मरहूम सय्यद मजहर अब्बास रिज़वी (मज्जन वकील) |
मरहूम अच्छे शाएरे अहलेबैत (अ.स.) थे. उनके नौहों का मजमुआ 'सहाबे ग़म' उर्दू में छप चुका है और हिंदी ज़बान में आने वाला है.
मज्जन साहब एक कामयाब वकील थे. करारी जब 'टाउन एरिया ' घोषित हुआ तो आप ने भी चैरमैन के चुनाव में किस्मत आजमाई. लेकिन मौला से मोक़बला न कर सके. चुनावी पंडितों का ख़याल है की चुनाव प्रचार में ही वोह इन्साफ और बराबरी की बात करने लगे थे.
इन्साफ और बराबरी की बात बिरादरी से हज्म नहीं हो सकती. लोकतंत्र में नेता बनना है हो इन्साफ और बराबरी काम नहीं आती. लोकतंत्र में चापलूसी, ठगी, दोखा, फरेब, झूट, बेईमानी वगैरा की आवश्यकता होती है. इन्साफ और बराबरी आदमी अपने घर में लागू नहीं कर सकता. तो समाज में कैसे मुमकिन है.
ईमान दारी के चुनाव निशान पर कोई मोहर नहीं लगाता है. नेता बनना है तो अपने को नीचा दिखाना होगा, घपला करने की सलाहियत पैदा करना पड़ेगी, अपनी ही कौम के घरों को नज़रे आतिश करवाने की हिम्मत जुटानी होती है. मुजरिमाना ज़ेहनियत का हामिल होना होता है.
मरहूम मज्जन वकील इन सब मीजान पर पुरे नहीं उतर सके इसी लिए चैरमैनी का चुनाव हार गए और फिर कभी इस मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं की.
मरहूम का चेहलुम 30 जनवरी को शहर इलाहबाद में करेली कालोनी के लगन पैलेस में सुबह दस बजे है. आप लोगों से शिरकत की गुजारिश है. अगर शिरकत मुमकिन न हो तो एक सुरह फातेहा से याद कर लें.
3 टिप्पणियां:
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