हर साल यही कोशिश रहती है की मुहर्रम का पहला अशरह करारी में गुज़रे, जिसने भी अय्यामे अजा अपने वतन में गुज़ारा वोह वहीँ का हो गया. लोग अपने गाँव में मुहर्रम करना इस लिए पसंद करते हैं क्यूंकि वहां दस रोज़ Full Time मजलिसें करने को मिलती हैं. मजलिस का सिलसिला नमाज़े सुब्ह से शुरू होता है तो रात तकरीबन 11 बजे तक जारी रहता है. शहरों में लोग अपने कामकाज में भी जुटे रहते हैं और शाम को दफ्तर के बाद एक या दो मजलिस कर लेते हैं. इसे लोग Part Time मुहर्रम कहते हैं. इस साल करारी के लिए तीन मुहर्रम को बॉम्बे से निकले. चार मुहर्रम को इलाहबाद पवन से पहुंचे. सफ़र अच्छा गुज़रा. वजीर मांमुं के सब से छोटे फ़रज़न्द शम्स भी उसी ट्रेन में थे. तालाब्पर के रिजवान अपनी मारुती लाए थे शम्स को अन्डेहरा लेजाने के लिए. शम्स ने अन्डेहरा होकर करारी जाने की दावत दी. हम ने कबूल कर ली. साथ में दो नौजवान भी थे. उन्हें भी गाँव के मुहर्रम का शौक़ था. रिजवान अच्छी गाडी चलाते हैं. तकरीबन रोजाना वोह करारी - इलाहाबाद के दरमियान सवारी लाते लेजाते हैं. उनसे 09335890316 राबता किया जा सकता है.
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