छे मुहर्रम को अकील अब्बास के घर से (चमन गंज) कर्बला के लिए दो पहर ३ बजे जुलूस अजा बरामद होता है.
इस जुलूस में शबिहे ज़ुल्जनाह भी साथ होता है.
अंजुमन की कोई क़ैद नहीं है. साहेबे बयाज़ नौहा पढ़ते हैं और अज़ादार मातम करते हुए कर्बला कि जानिब बढ़ते हैं.
इस का शुमार क़दीमी जुलूस में होता है. मरहूम एजाज़ अब्बास उर्फ़ मुन्ने साहब बहुत एहतिमाम किया करते थे. अब भी यह बड़ी शानो शौकत से बरामद किया जाता है.
सूरज डूबते ही अपनी मंजिल कर्बला पहुँच जाता है.
कर्बला में इदारे इस्लाम की जानिब से जनाब राशिद रिज़वी के जेरे इंतज़ाम चाय की सबील लगती है. चाय की इस सबील की शुरूआत मरहूम सय्यद गुलाम हसनैन करारवी ने तकरीबन 18 साल पहले की थी. पहले यह चाय अबुल हसन की चक्की के आगे बनी जाती थी. लेकिन जब इस की तकसीम से जुलूस में बाधा आने लगी तो इसे कर्बला में मुन्ताकिल कर दिया गया.
पहली से दस मुहर्रम में कर्बला में ख़त्म होने वाले चार जुलूस हैं.
मुहर्रम की पांच, छे, सात और रोज़े आशुरा का जुलूस.
इस जुलूस में शबिहे ज़ुल्जनाह भी साथ होता है.
अंजुमन की कोई क़ैद नहीं है. साहेबे बयाज़ नौहा पढ़ते हैं और अज़ादार मातम करते हुए कर्बला कि जानिब बढ़ते हैं.
इस का शुमार क़दीमी जुलूस में होता है. मरहूम एजाज़ अब्बास उर्फ़ मुन्ने साहब बहुत एहतिमाम किया करते थे. अब भी यह बड़ी शानो शौकत से बरामद किया जाता है.
सूरज डूबते ही अपनी मंजिल कर्बला पहुँच जाता है.
कर्बला में इदारे इस्लाम की जानिब से जनाब राशिद रिज़वी के जेरे इंतज़ाम चाय की सबील लगती है. चाय की इस सबील की शुरूआत मरहूम सय्यद गुलाम हसनैन करारवी ने तकरीबन 18 साल पहले की थी. पहले यह चाय अबुल हसन की चक्की के आगे बनी जाती थी. लेकिन जब इस की तकसीम से जुलूस में बाधा आने लगी तो इसे कर्बला में मुन्ताकिल कर दिया गया.
पहली से दस मुहर्रम में कर्बला में ख़त्म होने वाले चार जुलूस हैं.
मुहर्रम की पांच, छे, सात और रोज़े आशुरा का जुलूस.
हज़रत अब्बास (अ.स.) की दरगाह |
चाय का एहतिमाम |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें