करारी में चंद शरपसंद अनासिर, फासिक और बेदीन अफराद ने करारी के ओलामा को बदनाम करने की साजिश रची थी जिस का पर्दा फाश हो गया.
एक जय्यिद और बुज़ुर्ग आलिम दीन के नाम से मुहर्रम से पहले एक परचा छपवाया. इस परचे में महीनी यह थी के इसमें पहले करारी में निकलने वाले जुलूस की फेहरिस्त थी और आखिर में एक नोट लगी हुई थी.
यह नोट करारी के एक बुज़ुर्ग आलिम की तरफ मंसूब थी. इस आलिम के पीछे बहुत दिन से लोग ताक में लगे थे क्यूंकि यह मिम्बर पर अक्सर हक और खरी खरी बात करता था. मिम्बर से हक बात कहने में अपनी औलाद को भी नहीं बख्शा.
नीचे दर्ज अहेम नुक्तों ने इन शर पसंद अफराद की साज़िश को बेनकाब करदिया.
1 - इस आलिम के Rizvi खानदान से इतने अच्छे ताल्लुकात थे (9 मुहर्रम की रिज़वी कॉलेज की मजलिस इन्हीं से पढवाई जाती है) की अगर उन्हें इतनी बड़ी बात कहनी होती तो पहले वोह राबता करते और तस्दीक करते. इसी 9 मुहर्रम को वोह खुश अख्लाकी से कॉलेज के बंगले पर मिले.
2 - दूसरा यह इतना बुज़ुर्ग आलिम जो हव्ज़ाए इल्मिया से Retire हुआ हो और अपनी ज़िन्दगी दरसे अखलाक देने में गुजारी हो वोह कभी इतनी ओछी, पस्त और गिरी हुई बात नहीं कर सकता. इस आलिमे दीन को पता है किसी इलाके में रहने वाला अगर अपनी बस्ती के जुलूस या मजलिस के बारे में जानकारी नहीं रखता तो वोह कोई ऐब नहीं है. बहुत से अफराद ऐसे हैं जो शहरों में रहते हैं और अपनी बस्ती की तफ्सीलात नहीं जानते, लेकिन अपने इलाके से जुड़े हुए हैं और अपनी बस्ती की तरक्की के लिए अस्पताल, स्कूल और कॉलेज तामीर करने के काम करते हैं जिस से लोग अपना निजी फ़ाएदा भी उठाते हैं और चंदा भी ले जाते हैं.
3 - सब से बड़ी दलील इस परचे के पीछे मुजरिमाना ज़िन्दगी गुज़ारने वालों की यह है के उन्हों ने ऐसे आलिमे दीन के नाम से मंसूब किया है जिसने अपनी दीनी तालीम लखनऊ या बनारस में नहीं हासिल की बल्कि नजफे अशरफ के बड़े बड़े अयातुल्लाह और मराजे किराम से दरस हासिल किया. और यह आलिमे दीन इतनी बात ज़रूर जानता है की अपनी बस्ती के मुहर्रम की मजलिस और जुलूस की तफ्सीलात न जान्ने वाला "शिय्यत से खारिज" नहीं हो सकता, क्यूंकि यह अक्ल और शरीअत के मनाफ़ी है.
4 - यह भी जानकार आप लोगों को हैरत होगी की इस handbill को जिस आलिमे दीन से मंसूब किया उसके नाम के साथ उसकी दस्तखत (signature ) भी नहीं है. बिला दस्तखत कोई भी परचा किसी रद्दी की जीनत ही बन सकता है.
एक जय्यिद और बुज़ुर्ग आलिम दीन के नाम से मुहर्रम से पहले एक परचा छपवाया. इस परचे में महीनी यह थी के इसमें पहले करारी में निकलने वाले जुलूस की फेहरिस्त थी और आखिर में एक नोट लगी हुई थी.
यह नोट करारी के एक बुज़ुर्ग आलिम की तरफ मंसूब थी. इस आलिम के पीछे बहुत दिन से लोग ताक में लगे थे क्यूंकि यह मिम्बर पर अक्सर हक और खरी खरी बात करता था. मिम्बर से हक बात कहने में अपनी औलाद को भी नहीं बख्शा.
नीचे दर्ज अहेम नुक्तों ने इन शर पसंद अफराद की साज़िश को बेनकाब करदिया.
1 - इस आलिम के Rizvi खानदान से इतने अच्छे ताल्लुकात थे (9 मुहर्रम की रिज़वी कॉलेज की मजलिस इन्हीं से पढवाई जाती है) की अगर उन्हें इतनी बड़ी बात कहनी होती तो पहले वोह राबता करते और तस्दीक करते. इसी 9 मुहर्रम को वोह खुश अख्लाकी से कॉलेज के बंगले पर मिले.
2 - दूसरा यह इतना बुज़ुर्ग आलिम जो हव्ज़ाए इल्मिया से Retire हुआ हो और अपनी ज़िन्दगी दरसे अखलाक देने में गुजारी हो वोह कभी इतनी ओछी, पस्त और गिरी हुई बात नहीं कर सकता. इस आलिमे दीन को पता है किसी इलाके में रहने वाला अगर अपनी बस्ती के जुलूस या मजलिस के बारे में जानकारी नहीं रखता तो वोह कोई ऐब नहीं है. बहुत से अफराद ऐसे हैं जो शहरों में रहते हैं और अपनी बस्ती की तफ्सीलात नहीं जानते, लेकिन अपने इलाके से जुड़े हुए हैं और अपनी बस्ती की तरक्की के लिए अस्पताल, स्कूल और कॉलेज तामीर करने के काम करते हैं जिस से लोग अपना निजी फ़ाएदा भी उठाते हैं और चंदा भी ले जाते हैं.
3 - सब से बड़ी दलील इस परचे के पीछे मुजरिमाना ज़िन्दगी गुज़ारने वालों की यह है के उन्हों ने ऐसे आलिमे दीन के नाम से मंसूब किया है जिसने अपनी दीनी तालीम लखनऊ या बनारस में नहीं हासिल की बल्कि नजफे अशरफ के बड़े बड़े अयातुल्लाह और मराजे किराम से दरस हासिल किया. और यह आलिमे दीन इतनी बात ज़रूर जानता है की अपनी बस्ती के मुहर्रम की मजलिस और जुलूस की तफ्सीलात न जान्ने वाला "शिय्यत से खारिज" नहीं हो सकता, क्यूंकि यह अक्ल और शरीअत के मनाफ़ी है.
4 - यह भी जानकार आप लोगों को हैरत होगी की इस handbill को जिस आलिमे दीन से मंसूब किया उसके नाम के साथ उसकी दस्तखत (signature ) भी नहीं है. बिला दस्तखत कोई भी परचा किसी रद्दी की जीनत ही बन सकता है.
शरपसंदों की तरफ से करारी तकसीम किया गया परचा. |
19 टिप्पणियां:
bilkul sahee likha...karari men atank badhta ja raha hai.
Razi Uncle, ye sharpasand ka matlab kya hai?
aap jinko buzurg alim keh rahe hain wo bahut maheen hain. samjhe razi miyan.
Janaab kisi bhi Alime deen ke bare me aisi baat karna sahi nahi hai ......aur aajkal sevaay maheeni karne ke aur bacha kya hai karari me logo ke pas. Maheeni dekhna hai to kabhi election time me dekho. Sabke asli chehre samne aa jaate hai.
@anonymous.. janab jab alime deen aisi baate kre to kehna padta hai...
maulana sahab ka amir log par tanz theek nahi hai. unko soch samajh kar likhna tha. mota mota lifafa to amir se hee majlis padhne ka lete hai.
JINKE PASS KOI KAM NAHI UNHO NE AZADARI KE NAM PER BADE BADE MAKAN BANA LIYE, AZADARI KI ROTI KHA RAHE HEN.
BOLTE HAI KI AZADARI KHATRE MEN HAE, AISE LOG KA DHANDA KHATRE MEN HAI.
SACH kaduwa hota hai Maheen Logon,
Baghair kisi tehqeeq ke koi baat kehna behr haal ghalat hai. hume chahiye ke aalim e deen se confirm karen ke aisa unki taraf se huwa hai ke nahi.
Razibhai lage raho. molvi ke chakkar men na aao. ye sirf kaam rokna jaante hain karna nahin jante.
Karari mein gunda raj????
sare aam haq baat kehne wale apne baare mein haq sunne ki taqat rakhni chahiye.
Jo haq baat kahe wo tumhe Gunda dikhta hai,agar ye parcha Maulana sb. paas se taqseem hua hai to unhon ne haq baat hi kahi hai. Sirf 1 ya 2 juloos aur 1-2 majlise'n hi nahi hoti Karari me, jaisa ki MyKarari.com par bataya jata hai.
Sudhar jao Karari walon.
Bada dukh hota hai yeh dekh kar ki momin dusre momin ki buraai karta hai. Kyun karari waale ek dusre ki burai karte hain? Kyun woh ghalat ko sahi nahi karte? Kyun woh tanz karte rehte hain? Kyun woh milke nahi chalte? Kyun woh Karari ko sudhar nahi sakte? Is kyun ka jawaab kisi ke paas nahi hai. Kyunki unko buraiyaan karne se fursat nahi hai. Agar hum chahein toh mil ke yeh sab rok sakte hain. Karari ka naam duniya bhar main mashoor hai. Yahan se kai padhe likhe log nikle hain. Humein uska naam aur uncha karna chahiye naaki karari ki aur karariwaalon ki buraai karein. Inshallah waqt badlega aur sab sahi ho jaayega.
bhai sahab dukh na karen.
Har samaj mein bure log hote hain
har basti mein fitnagar hote hain
aalim aur jaahil ki qaid nahin rehti
aap afsos na karen aur dua karte rahen ki bure log sudhar jaen. Aameen.
ek do saal se karari aur aas paas problem ho rahe hain. lahna mein momeneen ke gharon mein aag laga diya gaya. jis nam nihad momin ghairon ka saath dete hue aag lagwai thee aaj uski gardan mein haath daale huwe yeh maulana saab aur unki aulad tahel rahi hai.
mimbar se kuch aur pado aur neeche utar kar kuch aur karo. haq zindabad..hahaha
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