30 दिसंबर 2010
अंसार हुसैन की इकलौती लड़की की तद्फीन
कल बुध की शाम को प्यारे बाबा मरहूम के फ़रज़न्द, अंसार हुसैन (साहबजादे) की एक ही नौजवान लड़की तनवीर फातेमा की मौत वाके हो गई. मरहूमा, दैनिक जागरण के कोशाम्बी के पत्रकार सरदार हुसैन उर्फ़ नय्यर की भतीजी हैं. तद्फीन आज मीरा रोड में नमाज़े जोहर के फ़ौरन बाद होगी. साहबजादे रेलवे में नौकरी करते हैं और मीरा रोड में रहीश पजीर हैं. तद्फीन के सिलसिले में मजीद मालूमात के लिए अली मियां इब्ने शरीफुल हसनैन से 9820386766 पर राबता किया जा सकता है.
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28 दिसंबर 2010
26 दिसंबर 2010
करारी की पहली मजलिस
मुहर्रम में करारी में मजालिस का आग़ाज़ सुबह सात बजे से हो जाता है. पहली मजलिस डिप्टी साहब के इमामबाड़े में होती है जिसे मौलाना ज़ोहैरकैन साहब खिताब फरमाते हैं. लेकिन उनसे पहले करारी के मशहूर सोज़ खान जनाब महमूदुल हसन आकर माईक पर पढना शुरू करते हैं. उनकी आवाज़ सुनकर अज़ादार अपने घरों से निकलना शुरू करते है. इस विडियो में माईक वाला आकर पहले माईक सेट कर रहा है. उसके बाद सोज़ शुरू होता है.
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वादिस सलाम में मजलिस
वदिस सलाम में ११ मुहर्रम को दोपहर तीन बजे मरहूम सय्यद ग़ुलाम हसनैन करार्वी की क़ब्र पर मजलिसे अजा मुनकिद की गई जिसे मौलाना रज़ा हैदर ने खिताब किया .
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21 दिसंबर 2010
नमाज़े वहशत की गुज़ारिश
गुलज़ार फ़ातेमा बिन्ते अली असग़र (गुज्जन बाजी) की तद्फीन आज मंझनपुर में हो गई. मरहूमा की उम्र 80 से ज़्यादा हो चुकी थी. आप लोगों से गुज़ारिश है की उनके लिए नमाज़े वहशत ज़रूर पढ़ें.
20 दिसंबर 2010
गुलज़ार फातेमा का अलालत के बाद इन्तेकाल
आज इलाहाबाद में एक तवील मुद्दत की बीमारी के बाद गुलज़ार फातेमा बिन्ते अली असग़र (वसीम की वालेदाह) ने इस फानी दुनिया को खैरबाद कहा. मरहूमा हज्ज और ज़ियारात के फराएज़ भी अदा कर चुकी हैं. तद्फीन इंशा अल्लाह कल मंगल के रोज़ मंझनपुर में 2 बजे होगी.
18 दिसंबर 2010
करारी में फ़ाक़ा शिकनी
रोज़े आशूर कर्बला में जुलूस ख़त्म करने और ताज़िया दफ्न करने के लोग अपने अपने इमामबाड़ों में फाक़ा शिकनी करने जाते हैं. तक़रीबन बीस बरसों से डा. अख्तर हसन रिज़वी (रिज़वी बिल्डर्स) अपने वालिदे मरहूम के ईसाले सवाब के लिए बड़े दरवाज़े के इमामबाड़ा में फ़ाक़ा शिकनी का प्रोग्राम का एहतेमाम करवाते हैं. लेकिन चंद अफराद के एतेराज़ की वजह से गुज़िश्ता साल से यह एहतेमाम रोशन अली के इमामबाड़े में मुन्ताकिल कर दिया गया. इस साल दीगर अफराद ने यह गुजारिश की है के इंशाल्लाह यह प्रोग्राम बड़े दरवाज़े होना चाहिए ताकि मरकज़ीयत बनी रहे.
बड़े दरवाज़े के इमामबाड़े के पीछे और बरगद के नीचे फ़ाक़ा शिकनी का दाल और चावल तैयार हो रहा है. |
रेहान भाई के मकान पर दौरे की मजलिस
फाटक के अक़ब में रेहान भाई के मकान पर दौरे की मजलिस पहली मुहर्रम से नौ मुहर्रम तक बरपा होती है. इन मजलिस की ख़ुसूसियत यह है की रेहान भाई खुद मर्सिया खानी अपने ख़ास अंदाज़ में करते हैं. और 8 मुहर्रम को एक जुलूस भी उनके मकान से बरामद होकर खर्कापर जाकर वापस लौटता है. बस एक कमी लोग महसूस करते हैं की मग़रिब की नमाज़ के वक़्त भी यह जुलूस जारी रहता है.
रेहान भाई मर्सिया पढ़ते हुए |
मरहूम मौलाना आबिद हुसैन की सालाना याद
दोशम्बा 13 मुहर्रम को शिया जामे मस्जिद में सुब्ह दस बजे मरहूम मौलाना सय्यद आबिद हुसैन ताबा सरह की रेहलत की सालाना याद मनाते हुए एक मजलिसे अज़ा का इनेक़ाद उनके पस्मंदगान ने किया है. करारी में मौजूद मोमिनीन से शिरकत की दरख़ास्त है. मरहूम करारी के उन ओलमा में शुमार किये जाते हैं जो अपनी सरज़मीन से मोहब्बत रखते थे और फ़ख्र से अपने नाम के आगे करार्वी लिखते थे . यही नहीं बल्कि मरहूम ने अपनी तद्फीन की वसीयत कर्बला के लिए की. आप से उनके के लिए सुरह फातेहा की गुज़ारिश है.
वादिस सलाम में मजलिस
आज दोपहर तीन बजे करारी वादिस सलाम में हमारे वालिदे मरहूम सय्यद ग़ुलाम हसनैन करार्वी की मर्क़द (कब्र) के पास मजलिसे अज़ा का एहतेमाम किया गया है. अज़दारों से शिरकत की गुज़ारिश है. मजलिस का आग़ाज़ जावेद रिज़वी एक मुख़्तसर मर्सिया से करेंगे.
अल्लामः जवादी की दसवीं बरसी
17 दिसंबर 2010
करारी में आशूरा का जुलूस
आज करारी में आशूरा का जुलूस बड़ी शानो शौकत से निकाला गया. तीन बड़े ताज़िए तीन अलग अलग मोहल्लों से निकलकर कर्बला पहुँचते हैं. एक ताजिया तालाब्पर से, दूसरा खर्कापर और तीसरा तेल्या पर से बरामद होते हैं. तेल्यापर के बड़ा दरवाज़े के इमामबाड़े में पहले शेहाब ने मुख़्तसर मसाएब पढ़ा उसके बाद सुब्बन रिज़वी ने मर्सिया पढ़ा और आखिर में मौलाना जवाद हैदर ने चाँद फिकरे मसाएब के पढ़े. जुलूस के इख्तेताम पर ज़ोरदार मातम पर नौहा "शब्बीर बहुत ही प्यासे थे इक बूँद नहीं पाया पानी" पढ़ा गया. इमाम बाड़ा रौशन अली में फाक़ा शिकनी कराई गई और ज़ियारते ताजियत पढ़ी गई.
15 दिसंबर 2010
छोटे तालाबपर में मजलिसो मातम
छेह मुहर्रम की शब् में छोटे तालाब्पर में मजलिस हुई . उसके बाद अम्बाही की अंजुमन ने नौहओं मातम किया. रात 7.30 बजे यह प्रोग्राम जावेद रिज़वी के मर्सिये से शुरू हुआ. लहना के आलिमे दीन मौलाना अली रेज़ा साहब ने खेताब फ़रमाया. लखनऊ में मुकीम सय्यद ऐनुर रज़ा सिर्फ इसी मजलिस में शिरकत करने आए थे. यह उनके हिस्से की सालाना मजलिस होती है जिसमें उनका हर भाई मौजूद रहने की कोशिश करता है.
छोटे तालाबपर का इमामबाड़ा |
दीन में मुनाफा
लोग दुनिया के बन्दे हैं और दीन सिर्फ उनकी ज़बानों पर चढ़ा हुआ है.
जब तक उनको मुनाफा मिलता रहेगा दीन का नाम लेते रहेंगे ....
उस के बाद जब बलाओं के ज़रिए आज़माए जाते हैं तो
दीन्दारों की तादाद खुदबखुद कम हो जाती है.
-----इमाम हुसैन (अ.स.)
जब तक उनको मुनाफा मिलता रहेगा दीन का नाम लेते रहेंगे ....
उस के बाद जब बलाओं के ज़रिए आज़माए जाते हैं तो
दीन्दारों की तादाद खुदबखुद कम हो जाती है.
-----इमाम हुसैन (अ.स.)
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करारी में चार बड़े जुलूस
करारी में चार बड़े जुलूसे अजा बरामद होते हैं जो कर्बला पर इख्तिताम पजीर होते हैं. पहला जुलूस खर्कपर से बरामद होता है. दूसरा जुलूस हाता के पास खुरशेद के आबाई मकान से. तीसरा जुलूस महल पर से और चौथा रोज़े आशूर को जो एक साथ तीन मकामात से बरामद होता है. तेल्यापर, तलाब्पर और खर्कापर.
5 मुहर्रम को जुलूस बरामद हुआ जिसमें शबीहे ज़ुल्जनाह नहीं होता है सिर्फ अलम होता है. यह जोलूस मग़रिब की अज़ान तक कर्बला पहुँच जाता है.
5 मुहर्रम को जुलूस बरामद हुआ जिसमें शबीहे ज़ुल्जनाह नहीं होता है सिर्फ अलम होता है. यह जोलूस मग़रिब की अज़ान तक कर्बला पहुँच जाता है.
बड़ा घर का इमामबाड़ा
बड़ा घर का इमामबाड़ा जिसे लोग बड़ा दरवाज़ा भी कहते हैं और जो तेल्यापर में है, वहां रोजाना सुब्ह 8.30 मजलिस का वक़्त तय है. यह अशरा खानदान के अलग अलग के जिम्मे है. हर मजलिस बटी है. पांच मुहर्रम को अबू मोहम्मद-औंन मोहम्मद के हिस्से में आती है. इस मजलिस में सय्यद मोहम्मद हामिद रिज़वी साहब मर्सिया पढ़ते हैं और ग़ज़ब का पढ़ते हैं. लेकिन इस साल उनकी तबियत नासाज़ होने की वजह से वोह इलाहाबाद से ना आ सके थे. दैनिक जागरण के संवाद दाता नय्यर को मर्सिया पढना पड़ा. अच्छा मर्सिया पढ़ा. अल्लाह उनकी सलाहियतों में इजाफा करे.
सरदार हुसैन उर्फ़ नय्यर मर्सिया पढ़ते हुए |
पहली मजलिस डिप्टी साहब के इमामबाड़े में
मुहर्रम में करारी की सब से पहली मजलिस डिप्टी साहब के इमामबाड़े में होती है. सुबह 7.00 बजे सोज़ खानी महमूद भाई शुरू कर देते हैं. मौलाना जोहैरकैन साहब बरसों से यहाँ जाकिरी कर रहे हैं. इमामबाड़े की हालत बहुत खस्ता थी. सज्जाद भाई की मेहनतों से अच्छा ख़ासा हो गया है.
महमूदुल हसन साहब सोज़ पढ़ते हुए |
13 दिसंबर 2010
चाँद भाई सिपुर्दे ख़ाक
आज मरहूम असग़र अब्बास जिनेह लोग चाँद भाई कह कर बुलाते थे करारी की कर्बला में नमाज़े ज़ोहरैन के बाद सिपुर्दे ख़ाक कर दिया गया. नमाज़े जनाज़ा मौलाना सय्यद हसनैन करार्वी ने पढाई. तशीए जनाज़ा काफी मोमिनीन मौजूद थे. आप से गुज़ारिश है की उनकी रूह को एक सुरह फातेहा पढ़ कर बख्श दें.
नमाज़े जनाज़ा की तय्यारी |
जाफरपुर महावं में शबीहे ज़ुल्जनाह बरामद हुईं
करारी से नौ किमी दूर जाफरपुर महावं में सनीचर ४ मुहर्रम को रात 8 बजे शबीहे ज़ुल्जनाह बरामद हुए. उस से क़ब्ल मजलिसे अज़ा बरपा हुई जिस में मुस्तफाबाद से आए ज़ाकिर (जो महावां के दामाद भी हैं ) ने आधा घंटा फ़ज़ाएल पढने के बाद आधा घंटा का मसाएब पढ़ा. गाँव वाले बग़ैर तफ्रीके मस्लको मज़हब कसीर तादाद में मौजूद थे. यह जुलूस नौहा और मातम करता हुआ देर रात 2 बजे तमाम हुआ. इस मजलिसो जुलूस से पहले बाबू साहब की जानिब से मजलिस हुई थी. चूँकि इमामबाडा ऊंचाई पर है इस लिए ठंडक भी ज़्यादा थी. महावां में रोजाना तीन मजलिसें होती हैं. ट्रांसफार्मर जल जाने की वजह बिजली नहीं आ रही थी.
जाकिर मजलिस पढ़ते हुए |
तालाबपर में यूसुफ़ साहब के इमामबाड़े में मजलिस
मौलाना ज़मीर हैदर साहब मसेब पढ़ते हुए |
12 दिसंबर 2010
असग़र अब्बास साहब का इन्तेकाल
करारी में आज सुब्ह डिप्टी साहब के इमामबाड़े में मजलिस शुरू होने से पहले इओ खबर आई की फतेहपुर में बेरोई के असग़र अब्बास साहब का इन्तेकाल हो गया है. मरहूम मौलाना सय्यद हसनैन करार्वी के बड़े भाई थे. 76 साल की उम्र थी. उनका जसदे खाकी करारी लाया गया है. कल ग्यारह बजे के बाद उनकी तद्फीन करारी की कर्बला में होगी.
अन्डेहरा में अज़ादारी
करारी से अन्डेहरा तकरीबन ६ किमी है. यह एक छोटा सा गाँव है. लेकिन यहाँ अज़ादारी बड़ी शान ओ शौकत से होती है. इमामबाड़ा खूबसूरत और शहर जैसा. साफ़ सुथरा, सजा हुआ. बाहर सहेन में बैनर लगे हुए. बारह रोज़ तक जेनेरटर से बिजली. गली कूचों में रौशनी. मजलिस पढने के लिए जाकिर आये हुए. रोजाना जुलूस. नज्र का माकूल इंतज़ाम. इसी तराइ haiह वहां से दो किमी करीब में दर्यापुर मंझ्यावान है. वहाँपर भी इसी तरह की रौनक. सभी मज़हब ओ फिरके के लोग इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में ग़म मनाते हैं और आंसू बहाते हैं.
अन्डेहरा का इमामबाड़ा |
करारी में मुहर्रम
हर साल यही कोशिश रहती है की मुहर्रम का पहला अशरह करारी में गुज़रे, जिसने भी अय्यामे अजा अपने वतन में गुज़ारा वोह वहीँ का हो गया. लोग अपने गाँव में मुहर्रम करना इस लिए पसंद करते हैं क्यूंकि वहां दस रोज़ Full Time मजलिसें करने को मिलती हैं. मजलिस का सिलसिला नमाज़े सुब्ह से शुरू होता है तो रात तकरीबन 11 बजे तक जारी रहता है. शहरों में लोग अपने कामकाज में भी जुटे रहते हैं और शाम को दफ्तर के बाद एक या दो मजलिस कर लेते हैं. इसे लोग Part Time मुहर्रम कहते हैं. इस साल करारी के लिए तीन मुहर्रम को बॉम्बे से निकले. चार मुहर्रम को इलाहबाद पवन से पहुंचे. सफ़र अच्छा गुज़रा. वजीर मांमुं के सब से छोटे फ़रज़न्द शम्स भी उसी ट्रेन में थे. तालाब्पर के रिजवान अपनी मारुती लाए थे शम्स को अन्डेहरा लेजाने के लिए. शम्स ने अन्डेहरा होकर करारी जाने की दावत दी. हम ने कबूल कर ली. साथ में दो नौजवान भी थे. उन्हें भी गाँव के मुहर्रम का शौक़ था. रिजवान अच्छी गाडी चलाते हैं. तकरीबन रोजाना वोह करारी - इलाहाबाद के दरमियान सवारी लाते लेजाते हैं. उनसे 09335890316 राबता किया जा सकता है.
10 दिसंबर 2010
इमाम हुसैन (अ.स.) पर गिरया.
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08 दिसंबर 2010
Moharram 1432
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07 दिसंबर 2010
निशाने बाज़ी में ज़ोरारह रिज़वी को कांस्ये का तमगा
रिजवी कॉलेज मुंबई की पिस्तोल शूटिंग की टीम की तरफ से खेलते हुए अली ज़ोरारह ने कांस्ये पदक जीता . उनकी टीम में तीन अफराद शामिल थे. दस मीटर के इस प्रतियोगिता में तीसरे नंबर पर आये. माई करारी उनको मुबारकबाद पेश करती है और दुआ करती है की निशाने बाज़ी की दुनिया में ज़ोरारह अव्वल नंबर रहें और कौम का नाम उंचा करें.
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05 दिसंबर 2010
साकिब रिजवी की मजलिसे तर्हीम आज
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04 दिसंबर 2010
मीर अनीस के मर्सिये का बंद
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03 दिसंबर 2010
01 दिसंबर 2010
करारी के नौजवान शाएर: रिजवान
कम सुखन, खामोश तबियत, खोदा तर्स और खुश अखलाक, यह हैं इस नौजवान शाएर की सिफात. बॉम्बे में नौ साल बैंक में मुलाज़मत करने के बाद रिजवान इस्तीफा देकर करारी आ गए और करारी की बाज़ार में एक छोटी सी जूता और चप्पल की दूकान खोल ली. शैरी भी करते रहे मगर अभी करारी वालों ने उनके ख़याल नहीं सुना. एक दो महफिलें की हैं. इरादे बुलंद हैं. अल्लाह इन्हें कामयाब करे. असल गाँव इनका दर्यापुर मंझ्यावान है और शेर हमदर्द इलाहाबादी के नाम से कहते हैं.
लिजीये आप खुद उनकी ज़बानी सुनें. चूंके दूकान के करीब भजन कीर्तन का प्रोग्राम हो रहा था इस लिए आप को तवज्जो से सुनना होगा.
लिजीये आप खुद उनकी ज़बानी सुनें. चूंके दूकान के करीब भजन कीर्तन का प्रोग्राम हो रहा था इस लिए आप को तवज्जो से सुनना होगा.
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30 नवंबर 2010
जश्ने ग़दीर का स्टेज
जैनाबिया बॉम्बे में जश्ने ग़दीर का स्टेज. यह जश्न सनीचर 27 नवम्बर को हुआ था. अंग्रेज़ी में रिपोर्ट के लिए click करें.
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29 नवंबर 2010
अली मियाँ का अंगूठा ज़ख्मी
मरहूम शरीफुल हसनैन के छोटे फरजंद, वजीहुल हसनैन जिनको लोग अली मियाँ के नाम से जानते हैं 25 नवम्बर को लोकल ट्रेन में लड़ाई कर रहे दो अजनबी आदमियों को छोडाते हुए उन में से एक ने ने उनके सीधे हाथ का अंगूठा चबा लिया. अली मियाँ को फ़ौरन अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्हें 1600 रूपये ईलाज में खर्च करना पड़े. मीरा रोड से रिजवी कॉलेज ड्यूटी जा रहे थे. अब उन्हों ने कान पकड़ लिया है की दो लड़ते अजनबियों के बीच कभी ना बोलेंगे. इस साल करारी में मुहर्रम की पहली तीन मजलिसें उनके हिस्से की हैं. My Karari उनके ग़म में बराबर का शरीक है.
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मजलिसे बरसी
आज नमाज़े जोहर से पहले शिया जामा मस्जिद, बान्द्रा बाज़ार, मुंबई में इग्यौना के हसन साहब (भारत नगर ) की वालेदा मरहूमा अमीर बानो बिन्ते मोहम्मद असग़र की बरसी की मजलिस हुई जिसे मौलाना शाहिद रेज़ा साहब ने खिताब फ़रमाया. मौलाना शाहिद साहब ने विलायते अली (अ.स.) जन्नत और जहन्नम का तज्केरा किया. आप ने कुरआन की तिलावत पर भी जोर दिया और कहा की जन्नत में दरजात एक एक आयात पर बुलंद होंगे. मौलाना शाहिद रेज़ा मरहूम अकबर रेज़ा के पोते हैं और बहुत अच्छी जाकिरी करते हैं. मजलिस के शुरू में मजमा बहुत कम था लेकिन आहिस्ता आहिस्ता लोग आते गए. कल रात जैनाबिया में ग़दीर की महफ़िल होने की वजह से बहुत से लोग मजलिस में शरीक न हो सके.
आप लोगों से गुजारिश है की मरहूमा को एक सुरह फातेहा पढ़ कर बख्श दें.
आप लोगों से गुजारिश है की मरहूमा को एक सुरह फातेहा पढ़ कर बख्श दें.
मौलाना शाहिद रेज़ा मजलिस पढ़ते हुए |
26 नवंबर 2010
बॉम्बे में जश्ने ग़दीर
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ग़ुस्सा करने से बचो
ग़ुस्सा करने से बचो. इमाम सादिक (अ.स.) फरमाते हैं की जो कोई अपने ग़ुस्से को काबू में रखता है अल्लाह तआला उसके ओयूब (बुराइयां) को छुपाये रखता है.
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25 नवंबर 2010
ग़दीर पर दबीर सीतापूरी का कसीदा
दबीर सीतापुरी का शुमार हिन्दुस्तान के मशहूर शाएरों में होता है. मरहूम अपना कलाम तरन्नुम में पढ़ा करते थे और खूब पढ़ते थे. जब वोह कोई कसीदा पढ़ते थे तो सुनने वाला भी झूम उठता था. इमामे ज़माना (अ.स.) के सिलसिले में उनकी नज़्म "अधूरा इंतज़ार " ने खूब शोहरत पाई थी. आज ईदे ग़दीर के मौके पर उनकी आवाज़ में ही उनका कलाम जो उन्हों ने ग़दीर के 1400 साल मोकम्मल होने पर केसर बाग़ में पढ़ी थी, पेश कर रहे हैं. विडियो ना मिलने पर उनकी आवाज़ को तसावीर में ज़म किया है. अल्लाह मरहूम की आवाज़ पर रहमत नाजिल करे. इमकानात पूरे हैं की इस वक़्त वोह अपना कसीदा आलमे बरज़ख में मोमिनीन अर्वाह को सुना कर उन्हें मेह्जूज़ कर रहे हों. इस आलमे दुनिया में आप भी सुनें और मसरूर हों.
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24 नवंबर 2010
ईदे ग़दीर
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18 नवंबर 2010
वल्लन भाई जिंदाबाद
गुज़िश्ता दो हफ्ता से पूरे उत्तर प्रदेश में चुनाव का वाइरल बुखार फैला हुआ था. यह चुनाव परधानी का था. भला करारी के अतराफ के लोग बचे क्यूँ रहते. करारी से तीन किलो मीटर पर एक गाँव है जो मलकिया कहलाता है. यहाँ से वल्लन भाई भी प्रधान के पद के लिए खड़े हुए थे. बहुत मज़बूत प्रतिद्वंदी थे. चारों तरफ वल्लन भाई जिंदाबाद की गूँज थी. सभी के मुंह से यही कलाम था की जीतेंगे तो वल्लन भाई. बच्चे नारा लगा रहे थे "हमारा प्रधान कैसा हो, वल्लन भाई जैसा हो", लेकिन वोट बटने के डर से इनके मुखालिफ ने इन्हें बैठा दिया और उसके बदले दस हज़ार सलवात का सवाब उन्हें हदया किया. वल्लन भाई ने सवाब कमाकर अपनी आखेरत तो बना ली मगर सवाब हदया करने वाला चुनाव हार गया. उसकी दुनिया भी चली गई. किसीकी आखेरत की गारंटी कौन ले सकता है.
वल्लन भाई एक नेक काम बहुत कसरत से करते हैं और वोह पुन्य काम है रिश्ता जोड़ने का. यह काम "फी सबीलिल्लाह" करते हैं. जितने भी घर बसाये आजतक किसी की शिकायत नहीं आई. छुटपुट घटनाएँ तो हर घर में होती हैं. सब सुखी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. लिजीये आप खुद सुन लें की वोह क्या कह रहे हैं. बोलने की रफ़्तार कुछ तेज़ है ज़रा ग़ौर से सुनिए:
वल्लन भाई एक नेक काम बहुत कसरत से करते हैं और वोह पुन्य काम है रिश्ता जोड़ने का. यह काम "फी सबीलिल्लाह" करते हैं. जितने भी घर बसाये आजतक किसी की शिकायत नहीं आई. छुटपुट घटनाएँ तो हर घर में होती हैं. सब सुखी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. लिजीये आप खुद सुन लें की वोह क्या कह रहे हैं. बोलने की रफ़्तार कुछ तेज़ है ज़रा ग़ौर से सुनिए:
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17 नवंबर 2010
करारी के सफ़र से वापसी
करारी में अगर बिजली अच्छी आ रही हो और मौसम भी खुशगवार हो तो वहाँ से कहीं बाहर जाने का जी नहीं चाहता. इतवार 14 नवम्बर का महानगरी से टिकट होने के बा वजूद बॉम्बे आने का जी नहीं चाह रहा था. सुबह इलाहाबाद के लिए पहली बस 7 बजे की थी. बस में मुसाफिर कम थे. उमूमन दो घंटे में इलाहाबाद पहुंचाने वाली यह मिनी बस सिर्फ डेढ़ घंटे में पहुँच गई. किराया सिर्फ पचीस रूपया. लेकिन बस से उतरकर साइकिल रिक्शा वाले ने करेली कालोनी का बीस रूपया किराया लिया. मौलाना अली आबिद साहब के दामाद, जनाब मज्जन साहब के घर सामान रखा और A ब्लाक की जानिब रवाना हुए. जियारत खालू की अयादत करनी थी. उनके जोड़ों में दर्द और बुखार ने उन्हें कमज़ोर कर दिया था.
अस्सन भाई का घर करीब था . मज्जन के साथ उनसे भी मुलाक़ात की. अग्यौना के शफी दादा भी बहुत दिनों से अलील थे . कमजोरी इतनी की चलना फिरना बंद हो गया. सिर्फ उठ कर बैठ सकते हैं. लेकिन इस बीमारी के बावोजूद उनकी ज़राफ़त में कमी नहीं आई . कहने लगे की : "करारी जाने का बहुत जी चाहता है." शफी हैदर दादा की उम्र 80 के करीब है. उनके बड़े भाई वसी हैदर का कम उम्र में इन्तेकाल हो गया था. मरहूम का रिश्ता मुज़फ्फर नगर में हुआ था. मरहूम हमारे खुसरे मोहतरम अल हाज सय्यद मोहम्मद अली आसिफ जैदी के हकीकी बहनोई थे.
अब बारी थी हामिद चाचा से मुलाक़ात की. उनकी भी तबियत ना साज़ रहती है. रानी मंडी में उनके दौलत खाने पहुँचने पर यह दुआ कर रहे थे की वोह घर पर मिल जाएँ. दुआ कुबूल हुई. वोह घर पर मौजूद थे और मज्जन वकील साहब के नौहों का मजमुआ "सहाबे ग़म " जो उर्दू ज़बान में छप चुका है और हिंदी ज़बान में छपने जा रहा है , की प्रूफ रीडिंग कर रहे थे.
हमें देखते ही सब लपेट कर रख दिया और हम लोग देर तक गुफ्तगू करते रहे . कुछ पुरानी यादें, कुछ अलालत का ज़िक्र, कुछ करारी के बारे में और फिर शेरोशएरी का तज्केरा. हामिद चचा ने ग़ज़ल, मंक़बत और मरसियों के बंद अपने खुसूसी अंदाज़ में सुनाए. नीचे मेराज फैजाबादी के चंद शेर आप ने पेश किये.
महानगरी 2.40 PM पर बनारस से इलाहाबाद आती है और 3.10 PM पर बॉम्बे के लिए रवाना होती है. वक़्त कम था. मज्जन ने लज़ीज़ मुर्ग की बिरयानी बनवाई थी. खाना खाने के बाद मज्जन ने इलाहाबाद स्टेशन पहुँचाया.
Janab Shafi Haider Rizvi |
अब बारी थी हामिद चाचा से मुलाक़ात की. उनकी भी तबियत ना साज़ रहती है. रानी मंडी में उनके दौलत खाने पहुँचने पर यह दुआ कर रहे थे की वोह घर पर मिल जाएँ. दुआ कुबूल हुई. वोह घर पर मौजूद थे और मज्जन वकील साहब के नौहों का मजमुआ "सहाबे ग़म " जो उर्दू ज़बान में छप चुका है और हिंदी ज़बान में छपने जा रहा है , की प्रूफ रीडिंग कर रहे थे.
हमें देखते ही सब लपेट कर रख दिया और हम लोग देर तक गुफ्तगू करते रहे . कुछ पुरानी यादें, कुछ अलालत का ज़िक्र, कुछ करारी के बारे में और फिर शेरोशएरी का तज्केरा. हामिद चचा ने ग़ज़ल, मंक़बत और मरसियों के बंद अपने खुसूसी अंदाज़ में सुनाए. नीचे मेराज फैजाबादी के चंद शेर आप ने पेश किये.
महानगरी 2.40 PM पर बनारस से इलाहाबाद आती है और 3.10 PM पर बॉम्बे के लिए रवाना होती है. वक़्त कम था. मज्जन ने लज़ीज़ मुर्ग की बिरयानी बनवाई थी. खाना खाने के बाद मज्जन ने इलाहाबाद स्टेशन पहुँचाया.
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13 नवंबर 2010
मजलिसे तर्हीम
कल इतवार 14 नवम्बर को नमाज़े जोहर से पहले शिया जामा मस्जिद में मर्हूमा ततहीर फातेमा बिन्ते रमजान हुसैन की ईसाले सवाब की मजलिस है. खिताबत इमामे जुमा व जमात मौलाना अली ज़फर काजमी साहब करेंगे. मर्हूमा का इन्तेकाल और तद्फीन पिछले जुमा को हुई थी. मोमिनीन से शिरकत की दरख्वास्त की गई है. जो इस मजलिस मैं शरीक नहीं हो सकते उनसे सुअराए फातेहा की गुजारिश है.
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करारी में बारात और वलीमा का मौसम
करारी में शादी बियाह का सिलसिला जारी है. बुधवार 10 नवम्बर को मंझनपुर में नन्हें भाई के लड़के की शादी का वलीमा, और जुमेरात को इलाहबाद शहर, करेली कालोनी के दुल्हन पैलस हाल में बाबू बख्शी साहब के फरजंद के निकाह के सिलसिले में वलीमा था. बारात लखनऊ गई थी.
शबे जुमा कानपुर में भी करारी के दामाद और अमरोहा के चश्मों चराग़ जनाब इकबाल नकवी साहब के सब से बड़े नूरे नज़र जो मोनू के नाम से पुकारे जाते हैं की शादी की मुनासिबत से वलीमा था. बरात ८ दिसम्बर को देहली के करीब, साहिबाबाद गई थी. मोनू मरहूम मोहम्मद रज़ा (मैकन) के नवासे हैं. वलीमा में मोख्तालिफ अक्साम की चटोरी डिशों का एहतेमाम किया गया था. जिसे लोगों ने पसंद किया. शेहरी रवाज के मुताबिक चाट, पानी पूरी, चोव्मिन, मसाला डोसा, पनीर पकोड़े वगैरा खाने से पहले दिया गया. काफी भी लोगों ने काफी मेकदार में पी. इकबाल भाई सफारी में स्मार्ट दिखाई दे रहे थे. उन्नाव से सक़लैन और सय्यादैन साहब भी तशरीफ़ लाए थे. वलीमा की इस तकरीब में हुसैन भाई भी पेश पेश थे, बावजूद ये की उनका बायाँ पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहा था. हाल ही में बॉम्बे के दौरे पर उनका पैर फिसल गया था और उनके में पैर फ्राक्चर हो गया था.
तकरीबन एक हफ्ते से नान गोश्त का दौर चल रहा है . खाते खाते तबियत के उकताने का डर था. अगर दरमियान में menu नहीं बदलता तो पापी पेट के खराब होने का ख़तरा था .इस अज़ीम खतरे को टालने के लिए पंजतन चाचा के लखते जिगर, शबीहुल ने कल जुमा के रोज़ सुबह नाश्ते पर हम लोगों को मदु किया और चने की रोटी, नमक मिर्च के साथ बैगन का भुरता पेश किया. नाश्ता करने पर तबियात मिर्च की वजह से सुस्स्वा तो गई लेकिन लुत्फ़ बहुत आया . जईके में इजाफा हुआ क्यूंकि शहेंशाह चचा और नब्बन चाचा भी दस्तरखान पर मौजूद थे.
अभी यह नाश्ता हजम नहीं हुआ की शोएब ने दोपहर के खाने में बड़े का पाया पकवाने का एलान कर दिया. अगर मौसम में ठंडक होती तो यह डिश भी यादगार हो जाती.
शबे जुमा कानपुर में भी करारी के दामाद और अमरोहा के चश्मों चराग़ जनाब इकबाल नकवी साहब के सब से बड़े नूरे नज़र जो मोनू के नाम से पुकारे जाते हैं की शादी की मुनासिबत से वलीमा था. बरात ८ दिसम्बर को देहली के करीब, साहिबाबाद गई थी. मोनू मरहूम मोहम्मद रज़ा (मैकन) के नवासे हैं. वलीमा में मोख्तालिफ अक्साम की चटोरी डिशों का एहतेमाम किया गया था. जिसे लोगों ने पसंद किया. शेहरी रवाज के मुताबिक चाट, पानी पूरी, चोव्मिन, मसाला डोसा, पनीर पकोड़े वगैरा खाने से पहले दिया गया. काफी भी लोगों ने काफी मेकदार में पी. इकबाल भाई सफारी में स्मार्ट दिखाई दे रहे थे. उन्नाव से सक़लैन और सय्यादैन साहब भी तशरीफ़ लाए थे. वलीमा की इस तकरीब में हुसैन भाई भी पेश पेश थे, बावजूद ये की उनका बायाँ पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहा था. हाल ही में बॉम्बे के दौरे पर उनका पैर फिसल गया था और उनके में पैर फ्राक्चर हो गया था.
तकरीबन एक हफ्ते से नान गोश्त का दौर चल रहा है . खाते खाते तबियत के उकताने का डर था. अगर दरमियान में menu नहीं बदलता तो पापी पेट के खराब होने का ख़तरा था .इस अज़ीम खतरे को टालने के लिए पंजतन चाचा के लखते जिगर, शबीहुल ने कल जुमा के रोज़ सुबह नाश्ते पर हम लोगों को मदु किया और चने की रोटी, नमक मिर्च के साथ बैगन का भुरता पेश किया. नाश्ता करने पर तबियात मिर्च की वजह से सुस्स्वा तो गई लेकिन लुत्फ़ बहुत आया . जईके में इजाफा हुआ क्यूंकि शहेंशाह चचा और नब्बन चाचा भी दस्तरखान पर मौजूद थे.
अभी यह नाश्ता हजम नहीं हुआ की शोएब ने दोपहर के खाने में बड़े का पाया पकवाने का एलान कर दिया. अगर मौसम में ठंडक होती तो यह डिश भी यादगार हो जाती.
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10 नवंबर 2010
करारी की जामे मस्जिद में आज दुआ
शमीम (ज़हीरुल अब्बास ) अभी तक बॉम्बे के कस्तूरबा हॉस्पिटल में पीलिया हो जाने की वजह से जेरे इलाज हैं. कल मंगल को खून की रिपोर्ट से मालूम हुआ की पीलिया 25 पॉइंट तक नीचे उतरा है जबकी उसे ज्यादा से ज्यादा 10 point होना चाहिए. करारी की जामे मस्जिद में आज ज़ोहरैन की नमाज़ के बाद मोमिनीन ने उनकी सेहत के लिए दस "मर्तबा अम्मान योजीब..." पढ़ा. आप लोगों से भी गुजारिश है की उनके जल्द सेहत याब होजाने की दुआ करें.
पंजतन रिजवी की दोख्तर का निकाह
दूल्हे राजा |
मंगल 9 नवम्बर को मंझन पुर में इसी शादी से मुताल्लिक वलीमा रखा गया, जिसमें करारी से खुसूसी तौर पर बॉम्बे के मेहमान शिरकत करने गए थे. खाना बहुत लज़ीज़ था, मखसूसन तंदूरी रोटी. बेरोई के लल्लन भाई, शाहेम्शः हुसैन, इरफ़ान और दीगर हजरात ने वलीमे का लुत्फ़ उठाया और रात ही में करारी वापस आ गए.
07 नवंबर 2010
करारी में ग़मी और खुशी की ताक्रीबात जारी
दो तीन दिनों से करारी में ग़मी और खुशी की ताक्रीबात जारी हैं और सिलसिला एक हफ्ते तक जारी रहेगा. सनीचर को दोपहर ११ बजे शिया जमे मस्जिद में मर्हूमा ततहीर फातेमा बीनते रमजान हुसैन के सेव्वोम की मजलिस हुई जिसे मौलाना अबुल कासिम साहब ने खिताब किया. मरहूमा की तद्फीन जुमा के रोज़ असर के वक़्त हुई थी.
शाम को नमाज़े मग्रेबैन के बाद शिया जामे मस्जिद में एक और मजलिस हुई जिसे मौलाना एहसन अब्बास साहब ने पढी . यह मजलिस मरहूम आक़ा हसन के ईसाले सवाब के लिए थी .
आज भी करारी की शिया जामे मस्जिद में मरहूम आका हसन इब्ने नाज़िर हुसैन के चेहलुम की मजलिस थी. जिसे बॉम्बे से आये मौलाना सय्यद हसनैन करार्वी ने खिताब फ़रमाया . हसनैन साहब ने नवें इमाम , इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की शहादत की मुनासेबत से उनकी ज़िन्दगी के हालात बयान किये. मजलिस के बाद नमाज़ बा जमा अत और फिर डिप्टी साहब के इमामबाड़े में नजर का एहतेमाम था.
अबुल कासिम साहब सेव्वोम की मजलिस पढ़ते हुए |
आज भी करारी की शिया जामे मस्जिद में मरहूम आका हसन इब्ने नाज़िर हुसैन के चेहलुम की मजलिस थी. जिसे बॉम्बे से आये मौलाना सय्यद हसनैन करार्वी ने खिताब फ़रमाया . हसनैन साहब ने नवें इमाम , इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की शहादत की मुनासेबत से उनकी ज़िन्दगी के हालात बयान किये. मजलिस के बाद नमाज़ बा जमा अत और फिर डिप्टी साहब के इमामबाड़े में नजर का एहतेमाम था.
मौलाना हसनैन साहब चेहलुम की मजलिस पढ़ते हुए. |
26 अक्टूबर 2010
मरहूम मंज़ूर तकवी (कज्जन)
मरहूम मंज़ूर तकवी (कज्जन), इस मुहर्रम में बहुत याद आएँगे. गुज़िश्ता साल वोह हर मजलिस में शरीक हुआ करते थे. अल्लाह उनका शुमार अहलेबैत के चाहनेवालों में करे.
मजलिस में गिरया करते हुए. |
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शमीम रिजवी अस्पताल में
ईरान कल्चर हाउस, बॉम्बे में मुलाजिम, ज़हीरुल हसन उर्फ़ शमीम शदीद पीलिया से दोचार हो गए हैं. आर्थर रोड, महालख्ष्मी, कस्तूरबा अस्पताल के वार्ड नंबर 19 और खाट नंबर 21 में दाखिल हैं जो निचले मंजिले पर है. . यह अस्पताल आर्थर रोड जेल के सामने है जहाँ बदनाम ज़माना कातिल क़स्साब क़ैद में है. आप लोग उनकी सेहत के लिए दुआ करें .
अगर आप उनकी खैरियत पूछना चाहते हैं तो उन्हें 9022742017 पर फोन करसकते हैं.
अगर आप उनकी खैरियत पूछना चाहते हैं तो उन्हें 9022742017 पर फोन करसकते हैं.
27 नवम्बर , आर्थर रोड, कस्तूरबा आस्स्पताल में |
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22 अक्टूबर 2010
शीराज़ी रिजवी ICU में
सुब्बन रिजवी के बड़े साहबजादे "शीराज़ी" की अचानक तबीयत खराब हो जाने की वजह से उन्हें इलाहबाद के मेडिकल कॉलेज में ICU में दाखिल किया गया है. उसकी सेहत के लिए दस मर्तबा "अम्मैं योजीबुल मुजतर्रा इजा द आहो व यक्शिफुस सू" पढ़ें.
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17 अक्टूबर 2010
मजलिसे चेहलुम
जनाब आका हसन मरहूम का चेहलुम करारी में 07 नवम्बर को होने जा रहा है. यह मजलिस करारी शिया जामे मस्जिद में होगी. बॉम्बे में रिहाइश पजीर मौलाना सय्यद हसनैन रिजवी करार्वी खिताबत फ़रमाएंगे. मजलिस ठीक 11.00 बजे दिन में शुरू हो जायगी .
बरसी की मजलिस
रियाज़ फातेमा मरहूमा, सुब्बन रिजवी की अहलिया की बरसी की मजलिस आज रात 8.00 बजे बॉम्बे के मलाड मालोनी में होगी. आप लोगों से शिरकत की दरखास्त है. यह मजलिस 3 इमामबाड़े में होगी.
03 अक्टूबर 2010
आका हसन मरहूम का फातेहा
जुमा एक अक्टूबर 2010 के रोज़ हमारे मरहूम फुफा आका हसन रिजवी का फातेहा मीरा रोड में मज्जन रिजवी के घर हुवा था. उनके इन्तेकाल को नौ दिन पूरे हुए. इस मौके पर ज़नानी मजलिस हुई और करीबी रिश्तेदारों ने नमाज़े मग़रिब के बाद फातेहा दिया . नीचे तस्वीर उसी वक़्त की है. आप से भी गुज़ारिश है की मरहूम को हम्द और सुरे तौहीद पढ़ कर बख्श दें.
02 अक्टूबर 2010
करारी में जुलूसे अमारी 2008
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28 सितंबर 2010
खुर्शीद मुज़फ्फर नगरी हिन्दुस्तान के मशहूर कसीदा पढने वालों में शुमार किये जाते हैं. उनकी आवाज़ का जादू सुनने वाले को मसहूर कर देता है. नीचे विडियो में उन्हों ने वोह कसीदा पढ़ा है जो तकरीबन 15 से 20 साल पुराना है. मगर जब वोह अपने मखसूस अंदाज़ में पढ़ते हैं तो बिलकुल ताज़ा मालूम होता है. सुनने वाला चाहे कितना ही थका हुआ हो वोह अपनी थकान को भूल कर अहले बैत की मोहब्बत में डूब जाता है. खुदा, खुर्शीद भाई की आवाज़ को हमेशा तरो ताज़ा रखे .
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23 सितंबर 2010
मरहूम आका हसन का सेव्वोम आज
इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलाय्हे राजेऊन. सय्यद आका हसन इब्ने नाजिम हुसैन का कलकत्ता मेल में इलाहाबाद जाते हुए इगतपुरी से पहले मंगल रात तकरीबन 11.30 बजे इन्तेकाल हो गया. मरहूम की तद्फीन बुध को शाम 4.30 बजे बम्बई के रेह्मताबाद कब्रस्तान में अमल में आई.
मरहूम आका हसन हमारे फुफा थे. 12 सितम्बर को सख्त बीमारी की वजह से उन्हें मीरा रोड के अस्पताल में दाखिल किया गया. वहां पर जब उम की तबियत में फर्क न हुवा तो उन्हें 15 सितम्बर २०१० को बम्बई के मशहूर सरकारी अस्पताल KEM ले जाया गया . एक हफ्ता रहने पर जब और शिफा के आसार नहीं दिखाई दिए तो उन्हें इलाहाबाद के लिए 21 सितम्बर को ले जाने के लिए कलकत्ता मेल में सवार किया गया. लेकिन मिटटी बम्बई की थी.
आज आंबेडकर रोड, बान्द्रा में मग्रेबय्न की नमाज़ के बाद मरहूम के फातेहा की मजलिस है. आप लोगों से शिरकत की गुज़ारिश है. यह भी गुज़ारिश है की मरहूम को एक सुरह फातेहा पढ़ कर बख्श दें.
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18 सितंबर 2010
"यौमे ग़म "
आज 8 शव्वाल. 1925 में आले सऊद ने मदीना में जन्नतुल बक़ी पर बने मासूमीन के रोजों को शहीद करवाया था. इस वाकए को याद करते हुए दुनिया भर के मुसलमान "यौमे ग़म " मनाते हैं.
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